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________________ संबंधी आयुष् के निमित्त रूप मृगया, द्यूत, एवं मदिरा आदि दुर्गुणों को मेरी पृथ्वी में से मैंने निषिद्ध किये हैं, तथा पुत्र रहित मृत्यु प्राप्त का धन भी लेना मैंने छोड़ दिया है और समग्र पृथ्वी अरिहंत प्रभु के चैत्य द्वारा सुशोभित कर दी है, तो अब में सांप्रतकाल में संप्रतिराजा तुल्य हुआ हूँ । पूर्व में मेरे पूर्वज सिद्धराज की भक्तियुक्त याचना से आपने वृत्ति (विवरण) से युक्त सांगव्याकरण (सिद्ध हेमचंद्र ) की रचना की है। साथ ही मेरे लिए निर्मल योग शास्त्र रचा है ओर लोगों के लिए द्वाश्रयकाव्य छंदानुशासन, काव्यानुशासन एवं नाम संग्रह (अभिधान चिंतामणि आदि कोष) प्रमुख अन्य स्वयमेव लोगों पर उपकार करने के लिए सज्ज हुए हैं, तथापि मेरी प्रार्थना है कि मेरे जैसे मनुष्यों को प्रतिबोध करने के लिए आप त्रिपष्टि शलाका पुरुषों के चरित्र के प्रकाशित करो।" इस प्रकार श्री कुमारपाल राजा के आग्रह से श्री हेमाचार्य ने धर्मोपदेश जिसका प्रधान फल है, ऐसा त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र वाणी के विस्तार में स्थापित किया अर्थात् रचना की । (गा. 16 से 20 ) जब तक सुवर्णगिरि (मेरु) इस जंबूद्वीपरूप कमल में कर्णिका का रूप धारण करे, जब तक समुद्र पृथ्वी के चारों ओर फिरता हुआ रहे और जब तक सर्य चंद्र आकाश मार्ग में जहाँ पथिक होकर भ्रमण करता रहे तब तक यह त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र महाकाव्य जैन शासन रूप पृथ्वी पर जयवंत रहे । (गा. 21 ) 330 इति प्रशस्ति समाप्त श्री त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र समाप्त त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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