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________________ वरुण के मरण के समाचार मिलने से चेटक राजा के सुभटों को लकड़ी का स्पर्श होने से वराह की भांति युद्ध करने में दुगुना उत्साह पैदा हो गया। साथ ही गणराजा द्वारा सनाथ हुए चेटक की सेना के सुभट क्रोध द्वारा होठों को दबाते हुए कुणिक की सेना को अत्यन्त कूटने लगे। इस प्रकार अपनी सेना को कूटते हुए देखकर कुणिक राजा पत्थर मारे हुए सिंह के समान क्रोधोद्धत होकर स्वयं ही दौड़ता हुआ वहाँ आ गया। वीरकुंजर कुणिक ने सरोवर को सदृश रणभूमि में क्रीड़ा करके शत्रु के सैन्य को कमल खड के सदृश दिशाओं में बिखेर दिया । कुणिक को दुर्जय जानकर अतिक्रुद्धित चेटक जो कि शौर्य रूप धनिक था, उसने धनुष के ऊपर वह दिव्य बाण चढ़ाया। उस समय शक्रेन्द्र ने कुणिक के आगे वज्रकवच कर दिया । पश्चात् पुनः वैशाली नागरी के अधिपति चेटक ने कान तक खींचकर दिव्य बाण छोड़ा, परंतु वह भी वज्र कवच से स्खलित हो गया । उस अमोघबाण को निष्फल हुआ देखकर चेटक राजा सुभट उनके पुण्य का क्षय मानने लगे । सत्यप्रतिज्ञ ने पुनः दूसरा बाण छोड़ा और उसे भी निष्फल हुआ देखकर वे लौट आए। दूसरे दिन भी उसी भाँति युद्ध हुआ एवं चेटक ने उसी प्रकार बाण छोडे, परंतु वे सफल नहीं हो सके। इस प्रकार दिनोंदिन घोरातिघोर युद्ध हुआ । दोनों ही पक्ष के मिलकर एक करोड़ अस्सी लाख सुभट मृत्यु को प्राप्त हुए। वे तिर्यंच और नरक में उत्पन्न हुए। पश्चात् गणराजा पलायन करके अपने अपने नगर में चले गये। तब चेटक राजा भी पलायन करके अपनी नगरी में घुस गए। तब कुणिक ने आकर विशाला नगरी को घेर लिया। (गा. 279 से 289 ) इधर प्रतिदिन रात्रि में सेचनक हाथी पर चढ़कर हल्लविहल्ल कुणिक के सैन्य में आने लगे और विपुल सैन्य का विनाश करने लगे। क्योंकि यह सेचनक हाथी स्वप्न हाथी के समान किसी के द्वारा पकड़ा या मारा नहीं जा सकता था । इसलिए जब रात्रि में सब सो जाते तब वे हल्ल विहल्ल बहुत से सैन्य का विनाश करके कुशल क्षेम वापिस चले जाते । एक दिन अपने मंत्रियों से कुणिक ने कहा कि इन हल्ल विहल्ल ने तो प्रायः आपके सर्व सैन्य को विलुप्त कर डाला है, इस जीतने का कोई उपाय है ?' मंत्री बोले कि - 'जब तक ये नरहस्ती हल्ल विहल्ल सेचनक हाथी पर बैठकर आते हैं, तब तक उनको किसी भी प्रकार से जीता नहीं जा सकता ? इसलिए उस हाथी का ही वध करना आवश्यक त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 300
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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