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________________ इस जगत में सर्व जालवत् है। श्री ऋषभदेव आदि इस चौवीसी में हुए तीर्थंकरों को एवं अन्य भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र के अर्हन्तों को मैं नमन करता हूँ। तीर्थंकरों को किया हुआ नमस्कार प्राणियों को संसार को छेदने के लिए एवं बोधि-लाभ के लिए होता है। मैं सिद्ध भगवन्तों को नमन करता हूँ, कि जिन्होंने ध्यान रूपी अग्नि से हजारों भवों के कर्म रूपी काष्ट को जला डाला है। पंचविध आचार का पालन करने वाले आचार्यों को मैं नमस्कार करता हूँ। जिन्होनें सदा भावच्छेद में उद्यत होकर प्रवचन (जिन शासन) को धारण किया है। जिन्होंने सर्वश्रुत को धारण किया है और शिष्यों को अध्यापन कराते हैं, उन उपाध्याय महात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ। जो लाखों भवों में बद्ध पाप का क्षणभर में नाश करते हैं, ऐसे शीलव्रतधारी साधुओं को मैं नमस्कार करता हूँ। सावध योग तथा बाह्य एवं अभ्यन्तर उपधि (बाह्य उपधि- वस्त्र, पात्र आदि उपकरण, अभ्यन्तर उपधि अर्थात् विषय कषायादि) को मैं मन-वचन-काया से वोसिराता हूँ। मैं यावज्जीवन पर्यन्त चतुर्विध आहार का त्याग करता हूँ। चरम उच्छवास के समय में इस देह को भी वोसिराता (त्याग करता) हूँ। दुष्कर्म की गर्हणा, प्राणियों की क्षामणा, शुभ भावना, चतुःशरण, नमस्कार स्मरण, और अनशन इस प्रकार छः प्रकार की आराधना करके वे नंदनमुनि अपने धर्माचार्य को, साधुओं को, और साध्वियों को खमाने लगे। अनुक्रम से इन महामुनि ने साठ दिन तक अनशन व्रत पालकर, पच्चीस लाख वर्ष का आयुष्य पूर्ण करके मृत्यु पाकर प्राणत नामके दसवें देवलोक में पुष्पोत्तर नामक विस्तृत विमान में, उपपाद शय्या में उत्पन्न हुए। एक अन्तर्मुहूर्त में महर्द्धिक देव बन गये। अपने उपर रहे देव दूष्य वस्त्र को दूर करके शय्या में स्थित होकर अवलोकन किया तो अचानक प्राप्त हुआ विमान, देवसूमह और विपुल समृद्धि को देखकर वे विस्मित हो गए। विचारने लगे कि 'यह सब मुझे किस तप के फलस्वरूप प्राप्त हुआ है? तब अवधिज्ञान के उपयोग से उनको अपना पूर्व भव एवं तप की स्मृति हुई। तब उन्होंने चित्त में चिन्तक किया कि “अहो! अर्हद्धर्म का अचिंत्य प्रभाव है'' उसी समय उनके सेवकभूत सर्व देवगण एकत्रित होकर वहाँ आए और अंजलीबद्ध करके हर्षित होकर उनको इस प्रकार कहने लगे-“हे स्वामी! हे जगत् को आनंदकारी! हे जगत के भद्रंकर! आपकी जय हो! चिरकाल तक सुख को प्राप्त करो! आप हमारे स्वामी हो, रक्षक हो, यशस्वी हो। आप विजय प्राप्त करो। यह आपका विमान है। हम आपके आज्ञाकारी देवता हैं। ये सुंदर 18 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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