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________________ वाजिंत्र हर्षपूर्वक बजेंगे। उसके दोनों ओर चामर बींजते रहेंगे। इस प्रकार खूब धामधूम से उस प्रतिमा को रक्षकजन पाटण की सीमा में लावेंगे। यह हकीकत श्रवण करके अतःपुर, परिवार के सहित चतुरंग सेना से परिवृत्त कुमारपाल राजा सर्व संघ के साथ उस प्रतिमा के सन्मुख जायेगे। वहाँ जाकर उस प्रतिमा को अपने हाथों से रथ में से उतारकर हाथी पर आसीन करके महामहोत्सव के साथ अपने नगर में प्रवेश करायेंगे। अपने राजभवन के समीपस्थ क्रीड़ाभवन में स्थापित करके उसकी विधिपूर्वक त्रिकाल पूजा करेगे। पश्चात् उस प्रतिमा के लिए उदायन राजा ने जो आज्ञा लेख लिखा था, उसका वांचन करके उसके प्रमाणानुसार सब कार्य करेंगे। निष्कपटी कुमारपाल राजा उस प्रतिमा की स्थापना करने के लिए एक स्फटिकमय प्रासाद बनायेंगे। मानो अष्टापद पर स्थित प्रसाद का युवराज हो वैसे, उस प्रासाद को देखने मात्र से जगत् को विस्मित करेगा। पश्चात् वह प्रासाद में उस प्रतिमा की स्थापना करेगा। इस प्रकार प्रतिष्ठापित उस प्रतिमा के प्रभाव से कुमारपाल राजा प्रतिदिन प्रताप संमृद्धि और आत्मकल्याण में वृद्धिंगत होता रहेगा। हे अभयकुमार! देव और गुरु की भक्ति द्वारा यह कुमारपाल राजा इस भारतवर्ष में तुम्हारे पिता को सदृश होगा।" (गा. 78 से 96) इस प्रकार श्री वीरप्रभु के श्रीमुख से श्रवण करके अभयकुमार प्रभु को नमन करके श्रेणिक राजा के समक्ष आकर कहने लगा कि- “हे पिताश्री यदि मैं राजा बनूंगा तो फिर मुझ से मुनि जीवन नहीं ग्रहण नहीं किया जा सकेगा, क्योंकि श्री वीर प्रभु ने उदायन राजा को अंतिम राजर्षि कहा है। श्री वीर परमात्मा सदृश स्वामी को पाकर और आपके पुत्रत्व को प्राप्त करके यदि मैं इस भवदुःख का छेद न करूं तो मुझ जैसा अन्य कौन पुरुष अधम कहा जाएगा? हे तात! मैं नाम से ही अभय हूँ, परंतु भव भय से सभय हूँ। इसलिए यदि आज्ञा दें तो मैं भी तीन भुवन को अभ्य देने वाले श्री वीरप्रभु का आश्रय करूँ। अभिमान रूपी सुख के हेतुभूत ऐसे राज्य से मुझे कोई प्रयोजन नहीं है। कारण कि महर्षियों ने संतोष को ही श्रेष्ठ सुख कहा है।" इस प्रकार अभय कुमार के वचन सुनकर श्रेणिक ने राज्य लेने के लिए उसे आग्रह से कहा। तब भी जब उसने राज्यग्रहण नहीं किया, तब अंत में राजा ने हर्ष से अभयकुमार को 288 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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