SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुत मानेगा। पराक्रम, धर्म, दया, आज्ञा और अन्य पुरुषगुणों से वह अद्वितीय होगा । वह राजा उत्तर दिशा में तुरूष्क (तुर्क स्थान) पूर्व में गंगा नदी दक्षिण में विंध्यगिरि और पश्चिम में समुद्र तक पृथ्वी को साधेंगे। एक वक्त वज्र शाखा और चंद्रकुल में हुए आचार्य हेमचन्द्र उस राजा को दृष्टि गत होंगे। वह भद्रिक राजा मेघ के दर्शन से मयूर की भांति उन आचार्य के दर्शन से हर्षित होकर उनको त्वरित गति से आकर वंदन करेगा। सूरिजी जिनचैत्य में धर्म देशना दे रहे थे, उनको वंदन करने के लिए वह अपने श्रावक मंत्रियों को साथ वहाँ आएगा। वहाँ वह प्रथम देव को नमस्कार करके पश्चात् तत्त्व को न जानने पर भी वह राजा शुद्ध भाव से आचार्य को वंदन करेगा। उनके मुखारविंद से शुद्ध धर्म देशना प्रीतिपूर्वक सुनकर वह राजा समकितपूर्वक अणुव्रत (श्रावक के व्रत) स्वीकार करेगा । तब बोध को प्राप्त करके वह राजा श्रावकाचार में पारगामी होगा। राज्यसभा में बैठने पर भी वह धर्मगोष्ठी से अपनी आत्मा को अनुरंजित करेगा अर्थात् धर्म चर्चा करेगा । प्रायः निरंतर ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला वह राजा अन्न शाक और फलादि संबंधी अनेक नियमों को विशेष प्रकार से ग्रहण करेगा । सद्बुद्धिशाली वह राजा अन्य साधारण स्त्रियों का तो त्याग करेगा ही परंतु अपनी धर्मपत्नियों को भी ब्रह्मचर्य पालन कर प्रतिबोध देगा। सूरिजी के उपदेश से जीव अजीव आदि तत्त्वों को ज्ञाता वह राजा आचार्य की तरह अन्यों को भी बोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त कराएगा । अर्हत् धर्म के द्वेषी ऐसे पांडुरोगी ब्राह्मण भी उनकी आज्ञा के गर्भश्रावक (जन्मजात ) तुल्य हो जावेगे। परम श्रावकत्व को प्राप्त करने वाले और धर्म के ज्ञाता वे राजा देवपूजा और गुरुवंदन किये बिना भोजन भी ग्रहण नहीं करेगा । वह राजा अपुत्र मृत्यु प्राप्त का भी धर्म ग्रहण नहीं करेगा । 'विवेक का फल यही है और विवेकी सदा तृप्त ही होते हैं । पांडु जैसे राजा भी जो मृगया (शिकार) छोड़ेगा नहीं उन राजाओं को वह छोड़ देगा और उसकी आज्ञा से अन्य सर्व भी छोड़ देंगे। हिंसा का निषेध करने वाला यह राजा राज्य करते हुए मृगया की बात तो दूर रही, परंतु खटमल या जूं जैसे क्षुद्र प्राणियों को अत्यज (शूद्र - चमार) आदि लोग भी मार नहीं सकेंगे। पापाद्धि (मृगया) का निषेध करने वाले इन महान् राजा के राज्य में अरण्य में रही सर्वमृगजातियाँ गोष्ट की गायों के समान निर्विघ्न रूप से जुगाली करेंगे। शासन में पाकशासन (इंद्र) के तुल्य वह राजा सर्व जलचर, स्थलचर और खेचर प्राणियों की रक्षा करने के लिए हमेशा के 1 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 286
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy