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द्वादश सर्ग वीतभयपत्तन में देवता द्वारा रेणुवृष्टि प्रद्योतराजा द्वारा प्रतिष्ठित जीवितस्वामी की प्रतिमा सह वीतभयनगर दब जाना, अभयकुमार की दीक्षा कूणिक चरित्र, चेटक राजा चरित्र, उदायिराजा-महावीर स्वामि के परिवार का वर्णन
अभयकुमार ने श्री महावीर प्रभु को नमन करके पुनः पूछा कि, 'हे स्वामी! राजर्षि उदायन का परिणाम क्या होगा? तब उत्कृष्ट नामकर्म की निर्जरा करने में तत्पर ऐसे श्री ज्ञातनदंन प्रभु ने प्रत्युत्तर दिया “हे अभयकुमार! पृथ्वी पर विचरण करते से महाव्याधि उत्पन्न होगी। उनकी चिकित्सा करते हुए निष्पाप आशय वाले वैद्य उनको कहेंगे कि, 'हे गुणरत्नों के सागर! आप स्वदेह में निःस्पृह हो तथापि इस रोग की शांति के लिए दही खाओ।' पछी राजर्षि वहाँ से विहार करके किसी गायों के स्थान में आयेंगे क्योंकि वहाँ निर्दोष दधि की भिक्षा सुलभ होती है। पश्चात् वहाँ से प्रस्थान करके जहाँ अपने भाणजे केशी राजा को राज्य दिया था, वहाँ उस वीतभय नगर में आयेगें। उदायन को आया हुआ ज्ञात होने से केशीराजा के मंत्री उनको कहेंगे कि, हे राजन! आपके मातुल उदायन अवश्य ही तप के क्षुब्ध होकर आए लगते हैं। इंद्रपद जैसे राज्य को छोड़ देने पर अवश्य ही उनको पश्चात्ताप हुआ होगा, इससे वे पुनः राज्य लेने की इच्छा से यहाँ आए लगते हैं, अतः आप उनका विश्वास मत करना। यह सुनकर केशी कहेंगे कि, “वे अपना राज्य वापस ले तो मुझे क्या चिंता हैं ? यदि धनवान अपना धन ले ले तो उसमें गोपाल किसलिए कुपित हो? तब मंत्री उसको कहेंगे कि 'हे राजन्! आपको आपके पुण्य से राज्य प्राप्ति हुई है। किसी ने दिया नहीं है, और राजधर्म भी तो वैसा ही है। क्षत्रिय तो पिता भाई, मामा मित्र या अन्य ये भी जबरन भी राज्य ले लेते हैं, तो जो प्रदत्त किया है, उसे कौन छोड़ देगा? मंत्रियों के ऐसे अत्याग्रह युक्तवचनों से केशी उदायन पर हुई भक्ति को त्याग देगा और कहेगा कि 'अब मुझे क्या करना? तब वे उदायन मुनि को विष दे देने की सलाह देंगे। तो केशी किसी पशुपालिका से उनको जहर मिश्रित दही दिला देगे। ‘जो अन्य की प्रेरणा के
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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