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________________ उदायन राजा संग्राम में कैद करे हुए प्रद्योत राजा की भोजन आदि से अपने समान ही संभाल रखने लगा। "क्षत्रिय का धर्म ही ऐसा है।'' अनुक्रम से पर्युषण पर्व आया, तो उदायन राजा ने उपवास किया। क्योंकि वह श्रावक था। उसकी आज्ञा से रसोइये ने प्रद्योत राजा को पूछा कि 'आज आप क्या खायेंगे? यह सुनकर उज्जयिनी पति क्षुब्ध होकर सोचने लगे कि ‘ऐसा प्रश्न आज तक तो कभी भी नहीं हुआ, यह आज ही हुआ है। अतः यह मेरे कुशलता के लिए नहीं लगता है। यह उपहास्य का वचन अवश्य ही मेरे वध या बंधन को सूचित करता है। ऐसा सोचकर उसने रसोईये से पूछा कि 'आज ऐसा प्रश्न करने का क्या कारण हैं ? क्योंकि विद्या से आकर्षित होकर आती हो, उस प्रकार रसवती हमेशा ही समयानुसार आ जाया करती है। रसोईया बोला कि राजन आज पर्युषण पर्व है, इसलिए हमारे स्वामी अंतपुर परिवार के साथ उपोषित रहे हैं, अर्थात् सभी ने उपवास किया है। हमेशा तो जो हमारे स्वामी के लिए रसोई होती थी, वही आपको भी खिलाते थे। परन्तु आज तो मात्र आपके लिए ही रसोई बनानी है, अतः अपको पूछा है। तब प्रद्योत ने कहा, “हे पाचक! तो फिर आज मेरे भी उपवास ही हो, क्योंकि यह पर्व महाउत्तम कहा गया है और मेरे माता पिता भी श्रावक थे, इसलिए मुझे भी अंगीकार करने योग्य है। रसोईया ने प्रद्योतराजा ने जो कहा, वह उदायन राजा को भी बता दिया। यह सुनकर उदायन राजा बोले कि- 'यह धूर्त्तजन है, क्या तू यह नहीं जानता? परंतु वह चाहे जैसा हो तो भी कारागृह में रह कर पर्युषण पर्व का शुभ नाम देकर आदरा है, इसलिए वह मेरा धर्मबंधु हुआ। तो उसे कारागृह में रखना योग्य नहीं है। ऐसा सोचकर तुरंत ही उदायन राजा ने प्रद्योत राजा को छोड़ दिया। पर्व की रीति के अनुसार उससे क्षमा मांगकर उसके ललाट पर जो 'दासीपति' ऐसे अक्षर लिखे थे, उसे ढंकने के लिए उसके ऊपर पट्टबंध किया। तब से राजाओं में वैभव सूचक पट्टबंध का रिवाज चालू हुआ। पहले तो वे केवल सिर पर मात्र मुकुट का ही बंध करते थे। उदायन राजा ने प्रद्योत राजा को अवंतिदेश पुनः सुपुर्द किया। वर्षाऋतु व्यतीत हो जाने पर वीतभय नगर में आ गए। उस छावणी में वणिकों ने ऐसा स्थिरवास किया कि वहाँ नगर बस गया, वह नगर दशपुर नगर के नाम से प्रख्यात हुआ। शुद्धबुद्धि संपन्न हुए प्रद्योतराजा ने वीतभय नगर की प्रतिमा के खर्च के लिए दशपुर नगर प्रदान किया एवं स्वयं उज्जयिनी नगरी में आया। (गा. 590 से 604) 280 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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