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________________ समान आचरण करती है। हे जगत्त्रय गरो! आप्त होने पर भी अनाप्त पने को मानते ऐसे मेरे पिता ने आपके वचनों को श्रवण करने का निषेध करके मुझे इतने हद तक ठगा है। हे त्रिलोकपति! जो कर्णांजली रूपी संपुट से आपके वचनामृत का श्रद्धापूर्वक पान करते हैं, वे धन्य हैं। मैं तो ऐसा पापी हूँ जो आपके वचनों को न सुनने की इच्छा से कान पर हाथ रखकर इस स्थान का उल्लंघन कर रहा था। ऐसे में मैंने एक बार इच्छा रहित आपके वचनों का श्रवण किया था, परंतु मंत्राक्षर जैसे उन वचनों द्वारा राजा रूप राक्षस से मेरी रक्षा हो गई। हे जगत्पति! जिस प्रकार मुझे मरण से बचाया है, उसी इस संसार सागर में डूबने से मुझे भी बचाओं।" तब प्रभु ने उस पर कृपा करके निर्वाण पद प्रदात्री शुद्ध धर्म देशना दी। जिसे सुनकर प्रतिबोध को प्राप्त कर रोहिणेय बोला कि, 'हे स्वामिन्! मैं यतिधर्म के योग्य हूँ या नहीं ? प्रभु ने उसे योग्य बताया तब वह बोला कि, "हे विभु! ऐसा ही है तो मैं व्रत ग्रहण करूंगा। परंतु उससे पूर्व मुझे राजा श्रेणिक को कुछ कहना है।' श्रेणिक राजा सभा में ही बैठे थे, उन्होंने कहा कि 'तुझे जो कुछ भी कहना हो, वह विकल्प या शंका रहित होकर कह। तब वह रोहिणेय बोला कि, 'हे राजन! आपने जिसे लोकवार्ता से सुना था, वही मैं आपके नगर को लूटने वाला रोहिणेय चोर हूँ। परंतु प्रभु के एक ही वचन श्रवण करने से, उसके आधार से मैं नौका द्वारा नदी की भांति अभयकुमार की दुर्लध्य बुद्धि का भी उल्लंघन कर गया हूँ। हो राजरवि! आपके संपूर्ण नगर को मैंने ही लूटा है, इसलिए आप अन्य कोई चोर की शोध मत करना। अभी मेरे साथ किसी को भेजें कि जिससे चोरी का सब माल बता दूं एवं पश्चात् दीक्षा लेकर मेरा जन्म सफल करूं। (गा. 91 से 102) तत्पश्चात् श्रेणिक राजा की आज्ञा से अभयकुमार एवं अन्य अनेक लोग कौतुक से उस चोर के साथ चल दिये। रोहिणेय ने पर्वत, नदी, कुंज एवं श्मशान आदि में छिपाया हुआ धन अभयकुमार को बताया। अभयकुमार ने जो जिसका था, वह उसे सौंप दिया। ‘नीतिज्ञ एवं निर्लोभ मंत्रियों की अन्य मर्यादा होती नहीं है।" तब अपने व्यक्तियों को जो बात थी, वह सब समझाकर श्रद्धालु रोहिणेय प्रभु के समक्ष आया। श्रेणिक राजा ने जिसका निष्क्रमण महोत्सव किया है, ऐसे उस रोहिणेय ने प्रभु को पास दीक्षा ग्रहण की। अनुक्रम से उसने कर्म का उन्मूलन करने के लिए चतुर्थ (उपवास) से लेकर छमासी त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 249
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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