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________________ उनको कहने लगे। यह सुनकर ‘क्या मैं देव हुआ हूँ ?' ऐसा रोहिणिया विचार करने लगा। गंधर्वो ने मधुर संगीत प्रारंभ किया। इतने में सुवर्ण की छड़ी लेकर कोई पुरुष आया, उसने गंधरों से कहा कि, 'अरे! एकदम तुमने यह क्या चालू कर दिया? उन गंधों ने उत्तर दिया कि, 'अरे प्रतिहार! हमने हमारे स्वामी के समक्ष हमारा विज्ञान कौशल्य दर्शाना चालू कर दिया। प्रतिहार ने कहा, बहुत अच्छा, तुम तुम्हारा कौशल्य बताओ। परंतु पहले देवलोक के जो आचार हैं, वे भी उनसे करवा लो। तब गंधर्व बोले, क्या आचार करवाना है? प्रतिहार आक्षेप पूर्वक बोला कि, 'अरे! यह भी क्या तुम नये स्वामी के लाभ में भूल गये क्या ? सुनो सबसे प्रथम तो यहाँ जो नूतन देव उत्पन्न होता है। वह अपने पूर्व भव के सुकृत्य और दुष्कृत्य की जानकारी दे, पश्चात् वह स्वर्ग के सुख भोग का अनुभव करे।' गंधर्यों ने कहा कि- 'हे देव! हम तो नए स्वामी के लाभ से यह सब कुछ भूल गये हैं। इसलिए अब आप पहले सर्व देवलोक की आचार संहिता कराओ। इस प्रकार उन्होंने कहा। तब उस पुरुष ने उस रोहिणेय चोर से कहा, 'हे भद्र! आप आपके पूर्व भव के सुकृत्य दुष्कृत्य यथार्थ रूप से हमें कहो, पश्चात् स्वर्ग के सुखों का भोग करो। यह सुनकर रोहिणिया विचारमग्न हो गया कि, क्या यह सब सत्य होगा? अथवा मुझे मेरे कबूलात के द्वारा पकड़ने का अभयकुमार द्वारा रचा गया कोई प्रपंच है? परंतु उसकी जानकारी कैसे करना? ऐसा चिंतन करते करते यकायक उसके पैर में से कांटा निकालते समय श्री वीरप्रभु के वचन याद आ गये। तब वह सोचने लगा कि श्री वीरप्रभु के मुखारविंद से जो वचन सुने है, उसके अनुसार तो जो देवता के चिह्न मिल जायेंगे तो मैं उसका सत्य उत्तर दूंगा अन्यथा जैसा ठीक लगेगा वैसा उत्तर दूंगा। ऐसा विचार करके उसने प्रतिहारी, गंधर्व, अप्सराओं आदि का अवलोकन किया, तो वे सब पृथ्वी पर स्पर्श करते हुए, प्रस्वेद से मलिन, मुरझाई हुई पुष्पमाला और निमेष युक्त (पलक झपकते) उनको देखा। (गा. 5 3 से 72) प्रभु के वचनों के आधार पर यह सब कपट माया जानकर रेहिणिया ने जवाब देने का विचार कर लिया। पुनः वह पुरुष बोला कि, 'कहो तुम्हारा उत्तर सुनने को ये सर्व देव देवियाँ उत्सुक हुई हैं। तब रोहिणेय बोला कि, 'मैंने पूर्वजन्म में सुपात्र दान दिया है, जिनचैत्य कराये हैं, जिनबिंब रचवाये हैं, अष्टप्रकारी पूजा के द्वारा उनकी पूजा की है। तीर्थयात्राएं की है एवं सद्गुरुओं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 247
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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