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________________ अशोक वृक्ष के नीचे आसीन हुए। वहाँ पर अनेक सुर, असुर एवं विद्याधरों ने उनको वंदना की। गौतम ने उनको योग्यतानुसार धर्मदेशना दी। उनके पूछे हुए संदेहों को तर्क शक्ति द्वारा केवली भगवन्त के तुल्य दूर किया। देशना देते हुए प्रसंगोपात उन्होंने निर्देश किया कि 'साधुगण शरीर से शिथिल हो जाते हैं, और ग्लानि पा जाने मात्र से जीवसत्ता द्वारा कांपते कांपते चलते हों, वैसे हो जाते हैं। गौतम स्वामी के ऐसे वचन श्रवण करके वैश्रवण (कुबेर) उनके शरीर की स्थूलता देखकर वे वचन उनमें में अघटित जानकर किंचित्मात्र हंसा। उस समय मनः पर्यव ज्ञानी इंद्रभूति उसके मन का भाव जानकर बोले कि, – 'मुनि जीवन में शरीर की कृशता का कुछ प्रमाण नहीं है, परंतु शुभ भावों एवं ध्यान द्वारा आत्मा का निग्रह करना, वह प्रमाण है। इसके ऊपर एक कथा निग्रह करना, वह प्रमाण है। इसके ऊपर एक कथा इस प्रकार है (गा. 194 से 201) इस जंबूदीप में महाविदेह क्षेत्र के आभूषण रूप पुष्कलावती नामक विजय में पुंडरीकिणी नामकी नगरी है। वहाँ महापद्म नामक राजा था। उसके पद्मावती नाम की प्रिया थी। उसके पुंडरीक और कंडरीक नाम के दो पुत्र थे। एक बार नलिनी वन नाम के उद्यान में कुछ मुनिगण पधारे। उनके पास महापद्म राजा ने धर्म श्रवण किया। जिससे प्रतिबोधित होकर पुंडरीक का राज्याभिषेक करके महापद्म राजा ने व्रत अंगीकार किया। अनुक्रम से केवलज्ञान प्राप्त करके वे मोक्ष में पधारे। एक बार परिभ्रमण करते हुए कुछ मुनि उस पुंडरीकिणी नगरी में आए। तब पुंडरीक और कंडरीक भी धर्मश्रवण करने गये। जिसमें पुंडरीक भावयति होकर स्वगृह में आए थे। उन्होंने मंत्रियों के समक्ष कंडरीक को बुलाकर का- वत्स! तू इस पिता के राज्य को ग्रहण कर, मैं इस संसार से भयभीत हुआ हूँ, अतः भयों से रक्षण करने वाली दीक्षा को अंगीकार करूंगा। तब कंडरीक ने कहा कि, बंधु! क्या तुम मुझे संसार में गिरा रहे हो? इसलिए मैं दीक्षा लूं और भवसागर से तिर जाऊँ।' पुंडरीक ने दो तीन बार उसे राज्य लेने को कहा। परंतु जब उसने उसे मान्य न किया तब पुंडरीक ने उसे कहा कि- “हे बंधु! इंद्रियाँ बहुत ही दुर्जय है। मन सदा चंचल है, तारुण्य वय विकार का धाम है और प्राणी को प्रमाद तो स्वाभाविक है, और फिर परीषह तथा उपसर्ग सहन करना दुःसह है, इसलिए तुझे दृढ़प्रतिज्ञ होना पड़ेगा। क्योंकि दीक्षा पालन करना अत्यन्त दुष्कर है। अभी तो श्रावक धर्म 224 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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