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________________ प्रिया! मुझ में ऐसी कोई भी कला या कौशल्य नहीं है कि जिससे मुझे कुछ भी प्राप्त हो सके, क्योंकि धनाढ्य पुरुष कला से ही ग्राह्य होते हैं।' वह बोली- कि जाओ! किसी राजा के पास याचना करो, क्योंकि पृथ्वी पर राजा जैसा दूसरा कल्पवृक्ष नहीं है। वह बात स्वीकार करके वह सेडूक उस दिन से ही पुष्प फल आदि से रत्नेच्छु जैसे सागर को सेवता है वैसे राजा की सेवा करने लगा। किसी समय चंपानगरी के राजा ने जैसे वर्षाऋतु बादलों से आकाश को घेर लेती है, वैसे अमित सैन्य से कौशांबी नगरी को घेर लिया। शतानीक राजा तो बिल में रहे सर्प की भांति सैन्य सहित कौशांबी के अंदर दरवाजे बंद करके समय की राह देखने लगा। कितनेक समय में चंपापति अपना सैन्य बहुत दुःखी होने से, बहुत से लोग मरण शरण हो जाने से, वर्षाऋतु में राजहंस की तरह अपने नगर की ओर चल दिया। (गा. 69 से 77) उस समय वह सेडुक ब्राह्मण पुष्पादि लेने के लिए उद्यान में जा रहा था, उसको वह दिखाई दिया। सैन्य क्षीण हो जाने से प्रभात में निस्तेज हुए नक्षत्र गणों से युक्त चंद्र के सामान निस्तेज हुआ उसे देखकर वह तत्काल शतानीक राजा के पास आया और कहा कि दाढ़ भंग हुए सर्प के सदृश तुम्हारा शत्रु क्षीण बलवाला होकर अपने नगर की ओर जा रहा है। इसलिए यदि अभी ही आप उठकर उसका सामना करोगे तो वह सुखपूर्वक ग्राह्य हो जाएगा। क्योंकि भग्न हुए पुरुष बलवान होने पर भी पराभव किया जा सकता है।" उसके वचनों को उपयुक्त मान कर शतानीक राजा तत्काल सर्व बलवान् और बाणवृष्टि कराने वाले प्रधान सैन्य से दारुण होकर नगर के बाहर निकला। उसे पीछे आता देखकर चंपापति के सैनिक पीछे देखे बिना ही भागने लगे। 'अकस्मात गिरी बिजली के सामने कौन देख सकता है ? चंपापति तो एकाकी ही किस दिशा में जाऊं' ऐसा भयभीत होकर पलायन कर गया। कौशांबीपति ने उसके हाथी, घोड़े, भंडार आदि पर कब्जा कर लिया। फिर मनस्वी वह शतानीक राजा हर्षित होता हुआ कौशांबी में वापिस आ गया तथा उस सेडुक ब्राह्मण को बुलाकर कहा कि, बोल मैं तुझे क्या दूँ ? विप्र बोला मेरी पत्नि को पूछकर फिर मांगूंगा।" गृहस्थों को गृहिणी के बिना विचार करने का दूसरा स्थान नहीं है।" भट्टजी खुशी होते होते घर आए और ब्राह्मणी को सर्व हकीकत कह सुनाई। बुद्धिशाली उस ब्राह्मणी ने सोचा कि यदि मैं राजा से गांव आदि की मांग करूंगी तो वैभव के मद से यह ब्राह्मण अवश्य ही 216 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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