SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भद्रादेवी राजा को छोड़कर पुत्र अचल कुमार को साथ में लेकर नगर से बाहर निकलकर दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ी। अचलकुमार ने वहाँ माहेश्वरी नामक नई नगरी बसाई । उसमें अपनी माता को रखकर पिता के पास आया। उसका पिता (रिपुप्रतिशत्रु) स्वयं की ही पुत्री का पति हो गया अतः सब लोग उसे 'प्रजापति' के नाम से बुलाने लगे । 'कर्म की गति बलवान है।' (गा. 112 से 117) इधर विश्वभूति का जीव महाशुक्र देवलोक से च्यवकर सातस्वप्नों से जिनका वासुदेव होना सूचित है, ऐसा वह मृगावती के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। समय पर मृगावती ने प्रथम वासुदेव को जन्म दिया। उसके पृष्ठभाग में तीन पसलियाँ थी, इसलिए उसका त्रिपृष्ठ अभिधान रखा। अस्सी धनुष्य की काया वाला वह अचल के साथ खेलने लगा। पीछे सर्व कलाओं का अध्ययन करके अनुक्रम से यौवन वय को प्राप्त किया । (गा. 118 से 120 ) इधर विशाखनंदी का जीव अनेक भवों में भ्रमण करके तुंगगिरि में केशरीसिंह हुआ। वह शंखपुर के प्रदेश में उपद्रव करने लगा। उस समय अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव ने एक नैमित्तिक को पूछा कि 'मेरी मृत्यु किससे होगी ?' तब नैमित्तिक ने कहा कि 'जो तेरे चंडवेग नाम के दूत पर घर्षण करेगा और तुंगगिरि पर रहे केशरीसिंह को एक लीलामात्र में मार देगा, वही तुझे मारने वाला होगा। तत्पश्चात् अश्वग्रीव राजा ने शंखपुर में शाली के क्षेत्र उगवाये और उसकी रक्षा के लिए अपने अधीनस्थ राजओं को बारी-बारी से रहने की आज्ञा की। एक बार प्रतिवासुदेव को सुनने में आया कि “प्रजापति राजा के दो पराक्रमी पुत्र हैं ।" इससे अपने किसी स्वार्थ के लिए उनके पास अपने चंडवेग दूत को भेजा। राजा प्रजापति अपनी सभा में संगीत करवा रहा था। वहाँ अपने स्वामी के बल से उन्मत्त हुआ चंडवेग दूत अकस्मात् ही वहाँ आ पहुँचा । जिस प्रकार आगमों का अध्ययन करते समय अकाल में बिजली हो जावे तो विघ्न रूप होती है, उसी प्रकार वह संगीत में विघ्न रूप हुआ और तत्काल ही राजा खड़े हो गए। दोनों कुमारों ने मंत्रियों को पूछा कि 'यह कौन है? अतः मंत्री बोले ‘यह दूत महापराक्रमी अश्वग्रीव राजा का प्रधान है ।' तब अचल और त्रिपृष्ट कुमारों ने अपने पुरुषों की आदेश दिया कि “जब यह दूत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व ) 9
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy