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________________ निंदा करने वाले उस गोशाला को सर्वानुभूति की तरह अनेक शिक्षा के वचन कहे । तो गोशाला ने उन पर भी तेजोलेश्या फेंकी, तो उनका भी शरीर जलने लगा। तत्काल ही मुनि ने प्रभु की प्रदक्षिण देकर पुनः व्रत ग्रहण करके आलोचना प्रतिक्रमण करके, सर्व मुनियों को खमाया और अच्युत कल्प में देवता हुए । गोशाला स्वयं को विजयी मानता हुआ प्रभु पर कठोर कचनों द्वारा आक्रोश करने लगा। तथापि एकांत दयालु प्रभु बोले- अरे गोशाला ! मैंने तुझे दीक्षा दी और दीक्षा देकर श्रुत का भाजन किया, तथापि तू मेरा ही अवर्णवाद बोल रहा है, तो तेरी बुद्धि क्यों फिर गई है ? प्रभु के ऐसे वचनों से अत्यन्त कुपित होकर गोशाला ने कुछ नजदीक आकर प्रभु के ऊपर भी तेजोलेश्या छोड़ी। परन्तु वह तेजोलेश्या पर्वत के ऊपर महावायु के समान प्रभु पर असमर्थ होकर, उसने भक्ति से प्रभु को तीन प्रदक्षिणा दी। उस तेजोलेश्या से नदी के किनारे पर उगी घास में उत्पन्न हुए दावानल से नदी का जल ज्यों तपता है, त्यों प्रभु के अंग में संताप उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात् 'इस दुष्ट ने मुझे अकार्य करने को प्रेरित किया' ऐसे क्रोध से उस तेजोलेश्या ने पुनः लौट कर छल से गोशाला के ही शरीर में प्रवेश किया। उससे अन्दर से दहन होने पर भी गोशाला ने धीठ होकर उद्धताई से प्रभु को इस प्रकार कहा कि, 'अरे काश्यप ! मेरी तेजोलेश्या से अभी तो तू बच गया है, तो भी उसके फलस्वरूप हुए पित्तज्वर से पीड़ित होकर आज से छ: महिने के अंत में तू छद्मस्थपने में ही मरण को प्राप्त होगा । प्रभु बोले- अरे गोशाला ! तेरा यह आग्रह व्यर्थ है, क्योंकि मैं तो अभी अन्य सोलह वर्ष तक केवलीपने में ही विहार करूंगा । परंतु तू आज से सांतवे दिन में तेरी ही तेजोलेश्या से हुए पित्तज्वर से पीड़ित होकर मृत्यु को प्राप्त होगा, इसमें किंचितमात्र भी संशय नहीं है ।" तब तेजोलेश्या से जिसका शरीर ग्लानि को प्राप्त हुआ, ऐसा गोशाला विलाप करता हुआ वहाँ ही वायु के शालवृक्ष की तरह पृथ्वी पर गिर पड़ा। उस समय गुरु की अवज्ञा से कुपित हुए गौतम आदि मुनिगण मर्मबेधी वचनों से गोशाला को ऊंचे स्वर में कहने लगे कि - "अरे मूर्ख! जो कोई अपने धर्माचार्य से प्रतिकूल होता है, उसकी ऐसी ही दशा होती है। अरे! तेरी धर्माचार्य पर डाली तेजोलेश्या कहाँ गई ? बहुत समय तक जैसे तैसे बोलने वाला और दो महामुनियों की हत्या करने वाले तुझ पर भी प्रभु ने तो कृपा ही की। परंतु अब तो तू स्वयमेव ही मृत्यु को प्राप्त होगा। पूर्व में प्रभु ने शीतलेश्या द्वारा यदि रक्षा न की होती तो तू वेशकाय को फेंकी तेजोलेश्या से त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 202
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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