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________________ जाकर उस शब्दालपुत्र को पुनः आजीविकामत में पूर्व की भांति स्थापित करूं।' ऐसी धारणा करके गोशाला अपने मतवालों से परिवृत्त होकर उसके घर आया। शब्दालपुत्र ने गोशाला को दृष्टि से भी मान नहीं दिया। इससे शब्दालपुत्र को अपने मत में स्थापित करने और श्रावक व्रत में से चलित करने में अशक्त होने पर गोशाला वहां से वापिस चला गया। (गा. 322 से 326) किसी समय वीरप्रभु राजगृह नगर के बाहर गुणशील नाम चैत्य में समवसरे। उस नगर में चुलनीपिता की जितनी समृद्धिवाला महाशतक नामक एक गृहस्थ था। उसके रेवती आदि तेरह पत्नियाँ थी। रेवती आठ कोटि सुवर्ण और आठ गायों का गोकुल अपने पिता के यहाँ से लाई थी एवं अन्य स्त्रियाँ एक कोटि सुवर्ण और एक एक गायों का गोकुल लाई थी। उसे भी चुलनीपिता के समान प्रभु के पास श्रावक के व्रत और नियम ग्रहण किये, साथ ही तेरह स्त्रियों के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों का त्याग किया। एकदा प्रभु विहार करते करते श्रावस्तीपुरी में आए। वहाँ कोष्टक नामक उपवन में समवसरे। उस नगरी में आनंद के समान ऋद्धिवान् नंदिनी पिता नाम का गृहस्थ था। चंद्र को अश्विनी की भांति अश्विनी नामकी उसके प्रिया थी। श्री वीरप्रभु के मुख से धर्म देशना सुनकर आनंद की भांति श्रावकत्व ग्रहण किया। (गा. 327 से 333) इस प्रकार देवताओं से भी अक्षोभ्य और पर्वत के तुल्य श्रावक जीवन में स्थिर रहने वाले श्री वीरप्रभु के मुख्य दस श्रावक हुए। इस प्रकार कमलों को सूर्य के सदृश भव्यजनों को प्रतिबोध करते हुए श्री वीरप्रभु भगवन्त भ्रमण करते हुए कौशाम्बी नगरी में पधारे। दिन के अंतिम प्रहर में चंद्र, सूर्य स्वाभाविक (शाश्वत) विमान में बैठकर प्रभु को वंदन करने हेतु आए। उनके विमान के तेज से आकाश में उद्योत हुआ देखकर लोग कौतुक से वहीं बैठे रहे। रात्रि हो जाने से स्वयं के उठने का समय देखकर चंदना साध्वी अपने परिवार के साथ वीर प्रभु को वंदन करके अपने उपाश्रय में चली गई। परंतु मृगावती सूर्य के उद्योत के तेज द्वारा दिन के भ्रम में रात हुई जान न सकी। इससे वह वहाँ ही बैठी रही। पश्चात् जब सर्य, चन्द्र चले गये, तब मृगावती को रात की जानकारी हुई, तब कालातिक्रम के भय से चकित हुई वह उपाश्रय में आई। चंदना जी ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 197
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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