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________________ गति में उत्पन्न हुआ और उसकी जो एक पत्नि पहले मर गई थी, वह भी तिर्यञ्च में उत्पन्न हुई एवं बाद में वह ब्राह्मण कुल में पुत्र रूप में पैदा हुई। उसकी पांच वर्ष की वय होने पर वह सोनी उसी ब्रह्माण के घर पर उसकी बहन रूप में उत्पन्न हुई। माता-पिता ने उस पुत्री का पालक उस पुत्र को रखा। वह अपनी बहन का भलीभांति पालन करता था, तथापि अति दुष्टता से वह रोती रहती थी। एक बार वह द्विजपुत्र उसके उदर को सहलाता सहलाता उसके गुह्य स्थान को छू गया। तो वह रोती रोती बंद हो गई। इससे उसने यह रुदन बंद करने का उपाय जान लिया। उसके पश्चात् जब भी वह रुदन करती, तब वह उसके गुह्य स्थान को स्पर्श करता था, तो रोती हुई चुप हो जाती थी। एक बार उसके माता-पिता ने उसे वैसा करते देख लिया तो क्रोध से उसे मारकर घर से बाहर निकाल दिया। वह किसी गिरि की गुफा में चला गया। अनुक्रम से उसी पाल में वे चार सौ निन्याणवे पुरुष रहते थे, वहाँ वह जा पहुंचा और उन चोरों के साथ समागम होने से वह भी उनमें सम्मिलित हो गया। इधर उसकी बहन युवावस्था प्राप्त होने पर कुलटा हो गई। वह स्वेच्छा से घूमती किसी गांव में आई। उन चोरों ने उसी गांव को लूट लिया और उस कुलटा को पकड़ लिया एवं इन सभी ने उसे स्त्री रूप में अंगीकार किया। एक बार उन सबने विचार किया कि 'यह बिचारी अकेली है, इससे अपने सबके साथ भोग विलास करने से अवश्य ही थोड़े ही समय में मर जाएगी। इसलिए कोई दूसरी स्त्री को ले आए तो अच्छा। ऐसा विचार करके वे दूसरी स्त्री ले आए। तब वह कुलटा स्त्री ईर्ष्या से उसके छिद्र शोधने लगी एवं अपने विषय में भाग लेने वाली मानने लगी। एक बार वे सभी चोर चोरी करने के लिए किसी स्थान पर गये। उस समय छल करके पहली स्त्री उसे कुए के पास ले गई और बोली कि, 'भद्रे! देख इस कुए में क्या है ? वह सरल स्त्री उसमें देखने गई तो उसने उसे धक्का मारकर अंदर डाल दिया। चोरों ने आकर पूछा कि वह स्त्री कहाँ है? तब वह बोली कि मुझे क्या मालूम ? तुम तुम्हारी पनि को क्यों संभालते नहीं? चोरों ने जान लिया कि अवश्य ही उस बिचारी को इसने ईर्ष्या से मार डाला है। उस ब्राह्मण ने सोचा कि 'कहीं यह मेरी दुःशीला भगिनी तो नहीं है? इतने में उसने लोगों के पास सुना कि यहाँ सर्वज्ञ भगवन्त पधारे हैं। इसलिए वह यहाँ आया और अपनी बहन के दुःशील के विषय पूछने में लज्जा आने से पहले तो उसने मन में ही पूछा, तब मैंने उसे कहा कि 'वाणी से पूछ' । तब उसने ‘यासा सासा' ऐसे शब्दों से ‘वह स्त्री क्या मेरी बहन है ?' ऐसा पूछा। उसका मैंने एवं इतना ही उत्तर 190 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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