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________________ है, तो अपने स्वाधीन प्रजा पर तो उनका कैसा जुल्म होगा? इस प्रकार शतानिक ने निर्भय होकर दूत का तिरस्कार करके निकाल दिया। दूत ने अवंती में आकर यह वार्ता चंडप्रद्योत कह सुनाया। यह सुनकर चंडप्रद्योत को को बहुत क्रोध आया। इससे सैन्य के द्वारा दिशाओं को आच्छादन करता हुआ मर्यादा रहित समुद्र की तरह उस कौशांबी नगरी की ओर चल दिया। गरुड़ के आने पर सर्प की भांति चंडप्रद्योत को आया हुआ सुनकर शतानीक राजा तो क्षुभित होने से अतिसार की वजह से तत्काल ही मरण को प्राप्त हो गये। देवी मृगावती ने विचार किया कि 'मेरे पतिदेव की तो मृत्यु हो गई और यह उदयनकुमार तो अभी अल्पबल वाला बालक है। ‘बलवान् का अनुसरण करना' ऐसा नीति वाक्य है, परन्तु इस स्त्रीलंपट राजा के संबंध में तो वैसा करने से मुझे कलंक लगेगा, इसलिए उसके साथ तो कपट करना यही योग्य है। इसलिए अब तो यहीं रहकर अनुकूल संदेश से उसे लुभाकर योग्य समय के आने तक काल निर्गमन करूं।' इस प्रकार विचार करके मृगावती ने एक दूत को समझाकर चंडप्रद्योत के पास भेजा। वह दूत छावनी में स्थित प्रद्योत राजा के पास आकर बोला कि- 'देवी मृगावती ने कहलाया है कि मेरे पतिदेव शतानीक राजा तो स्वर्गस्थ हो गये, इसलिए अब मुझे तुम्हारा ही शरण है। परंतु मेरा पुत्र अभी बल रहित बालक है। इसलिए यदि मैं अभी उसे छोड़ दूं, तो पिता की विपत्ति से हुए उग्र शोकावेग की तरह शत्रु राजा भी उसका पराभव करेंगे।" मृगावती की ऐसी विनती सुनकर प्रद्योत राजा अत्यन्त हर्षित होकर बोला कि "मेरे रक्षक होने पर मृगावती के पुत्र का पराभव करने में कौन समर्थ है?' दूत बोला कि- "देवी ने भी यही कहा है कि, प्रद्योत राजा के होते हुए मेरे पुत्र का पराभव करने में कौन समर्थ है ? परंतु आप पूज्य महाराजा तो दूर रहते हो और शत्रु राजा तो समीप ही रहते हैं, इसलिए “सर्प सिरहाने और औषधियाँ हिमालय पर' इस प्रकार है। यदि आप उत्तम प्रकार से हमारे साथ निर्विघ्न योग करना चाहते हो तो उज्जयिनी नगरी से ईंटें लाकर कौशाबी के चारों ओर मजबूत किला बनवा दो।' प्रद्योत ने वैसा करना स्वीकार किया। पश्चात् उज्जयिनी और कौशांबी के मार्ग में अपने साथ चौदह राजाओं के परिवार के साथ श्रेणिबंध स्थापित किया एवं पुरुषों की परंपरा द्वारा हाथों हाथ उज्जयिनी से ईंटे मंगवाकर अल्पसमय में ही कौशांबी के चारों ओर मजबूत किला बंधवा दिया। तब मृगावती ने दूत भेजकर कहलाया कि 'हे प्रद्योतराजा! आप धन धान्य और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 187
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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