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________________ धर्म यथार्थ रूप से श्रवण किया। इससे भार्या सहित प्रतिबोध प्राप्त कर गृहवास से विरक्त होकर उनके पास दीक्षा अंगीकार की। गुरु के साथ विचरण करता हुआ मैं किसी समय एक शहर में आया। वहाँ मेरी स्त्री बंधुमती भी अन्य साध्वियों के साथ विहार करती हुई आई। एक दिन उसे देखते ही मुझे पूर्व की विषय क्रीडा याद आ गई, इससे मैं उस पर अनुरक्त हो गया और अन्य साधु को मैंने इसकी बात कही। उस साधु ने यह हकीकत प्रवर्तिनी को कहा और उसने बंधुमती को ज्ञात कराया। यह सुनकर खेदित होती हुई बंधुमती इस प्रकार बोली कि – 'हे स्वामिनी! ये गीतार्थ हुए साधु भी इस प्रकार मर्यादा का उल्लंघन करे तो मेरी क्या स्थिति होगी? कारण कि मर्यादा पालन से ही समुद्र पृथ्वी को डुबा नहीं सकता। अब यदि मैं यहाँ से देशान्तर भी चली जाऊँ तो भी ये महानुभाव मुझे देशान्तर गई सुनकर भी मुझ पर से राग नहीं छोड़ देंगे। इसलिए हे भगवती! मै प्राण त्याग दूंगी, जिससे मेरा और उनका शील खंडित न हो।' यह सोचकर अनशन करके लीला मात्र में उसने थूक की तरह अपने प्राणों का त्याग कर दिया एवं देवत्व को प्राप्त हो गई। उसके मृत्यु प्राप्त हुई सुनकर मुझे विचार आया कि, 'अरे यह महानुभावा व्रतभंग के भय से मरण को प्राप्त हुई, और मैं तो व्रत का भंग होने पर भी अब तक जीता हूँ, तो मुझे अब जीने की क्या आवश्यकता है ? ऐसा सोचकर मैं भी अनशन करके मृत्यु के पश्चात् देवलोक में देव बना। वहाँ से च्यव कर यहाँ धर्मवर्जित ऐसे अनार्य देश में उत्पन्न हुआ हूँ। जिसने मुझे प्रतिबोध दिया, वही मेरा वास्तव में बन्धु और गुरु है। मेरे भाग्योदय से अभयकुमार मंत्री ने मुझे प्रतिबोधित किया है। परंतु अद्यापि मैं उनके दर्शन न कर सकने से मंदभागी हूँ। अतः अब पिता की आज्ञा लेकर मैं आर्य देश में जाऊंगा कि जहाँ मेरे गुरु अभयकुमार हैं। ऐसा मनोरथ करता हुआ और आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा की पूजा करता हुआ आर्द्रककुमार दिन व्यतीत करने लगा। (गा. 199 से 2 36) ___एक दिन आर्द्रककुमार ने अपने पिता को विज्ञप्ति की कि, 'मैं अभयकुमार के दर्शन करना चाहता हूँ।' तो आर्द्रक राजा ने कहा कि, 'हे वत्स! तुझे वहाँ जाना नहीं है, क्योंकि अपनी श्रेणिक राजा के साथ यहाँ रहते हुए ही मैत्री है। पिता का ऐसी आज्ञा से बद्ध और अभयकुमार के मिलने से उत्कंठित हुए 168 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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