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________________ आज्ञा दी। शुभाचरण वाली वह बाला पिता की आज्ञानुसार तत्काल ही उन मुनियों को प्रतिलाभित करने में प्रवृत्त हुई । उस समय पसीने से जिनके अंग तथा वस्त्र मलिन हो रहे थे, ऐसे उन मुनियों को वहराते समय उनके मल की दुर्गन्ध धन श्री को आई । इस पर सुगन्धित और निर्मल वस्त्राभूषण धारण करने वाली, अंगराग से लिप्त एवं शृंगार से मोहित वह बाला सोचने लगी कि, अरिहंत प्रभु ने जो धर्म प्ररूपित किया है, वह पूर्णरूपेण निर्दोष है । परंतु यदि इसमें प्रासुक जल से भी स्नान करने की मुनियों को आज्ञा दी होती तो उसमें क्या दोष था ? इस प्रकार मुनियों के मल के दुर्गन्ध से ही हुई जुगुप्सा द्वारा बांधे दुष्कर्म की आलोचना या प्रतिक्रमण किये बिना मृत्यु के पश्चात् हे राजन् ! उस कर्म से वह बाला राजगृह नगर में रहने वाली एक वेश्या के गर्भ में आई । गर्भस्थ ही वह बाला उसकी माता को अत्यन्त अरति देने लगी। इससे उस वेश्या ने गर्भपात की अनेक औषधियों का सेवन किया, तथापि वह गर्भ गिरा नहीं । 'कर्म के बल के समक्ष औषध की क्या हस्ति है ?' अनुक्रम से उस वेश्या ने एक पुत्री को जन्म दिया । वह पूर्व के कर्म के कारण जन्म से ही अति दुर्गन्धा थी । वेश्या ने स्वयं के उदर से जन्म होने के बावजूद भी उसने विष्टा के समान उसको त्याग दी । हे राजन् ! वही दुर्गन्धा तुमको दिखाई दी थी । " 1 (गा. 138 से 147) श्रेणिक ने पुनः प्रश्न किया कि, 'हे प्रभु! अब वह बाला किस प्रकार के सुख दुःख का अनुभव करेगी ? प्रभु ने फरमाया कि 'धन श्री ने सब दुःख तो भोग लिया है, परंतु वह सुखी कैसे होगी, वह सुनो। यह आठ वर्ष की उम्र में ही तेरी पट्टरानी होगी । उसकी प्रतीति के लिए मैं एक निशानी बताता हूँ कि, 'हे राजन् ! अंतःपुर में क्रीड़ा करते हुए तुम्हारे पृष्ठ भाग पर चढ़कर जो हंस की लीला करे, उसे यह दुर्गन्धा है, जान लेना । प्रभु की ऐसी वाणी सुनकर 'अहो! यह महद् आश्चर्य है । यह बाला मेरी पत्नि किस प्रकार होगी ?' ऐसी चिंता करता हुआ वह राजा प्रभु को नमन करके अपने स्थान पर गया । (गा. 148 से 152) इधर पूर्व कर्म की निर्जरा हो जाने से दुर्गन्धा की गंध चली गई। इतने में कोई वंध्या अभिरीणी ने उसको देखा, तब पुत्री रूप में उसे ग्रहण कर ली । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 163
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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