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________________ किया। देशना के अंत में प्रभु को प्रणाम करके प्रभु की वाणी से प्रसन्न हुए पुत्रों के साथ श्रेणिक स्वस्थानक पर गए। (गा. 375 से 377) श्रेणिक राजा के राजभवन में जाने के पश्चात् उनके मेघकुमार नाम के पुत्र ने उनको तथा धारिणी देवी को भक्ति से अंजलीबद्ध होकर उदार वचन से विज्ञप्ति करी कि 'आपने मेरा चिरकाल तक लालन पालन किया है, मैं केवल आपको श्रम देनेवाला हुआ हूँ। तथापि इतनी विशेष प्रार्थना कर रहा हूँ कि मैं इस अनंतदुःखदायी संसार से चकित हो गया हूँ और उस संसार के तारक श्री वीरप्रभु स्वयमेव यहाँ पधारे हैं, तो आप मुझे आज्ञा दो, कि जिससे मैं संसारभीरु के शरणरूप श्री वीर प्रभु के चरणों में जाकर दीक्षा ले लूं।' श्रेणिक और धारिणी पुत्र के इन वचनों को सुनकर बोले कि- “पुत्र! यह व्रत कोई सरल नहीं, तू कोमलांग होने से उनका पालन किस प्रकार कर सकेगा?' (गा. 378 से 383) मेघकुमार बोला- “हे पूज्य! मैं सुकुमार हूँ, फिर भी संसार से भयभीत होने से उन दुष्कर व्रतों को अंगीकार करूँगा। इसलिए मुझ पर प्रसन्न होवे। हे माता-पिता! जो मृत्यु मातपिता को उत्संग में से भी खींच लेती है, उस मृत्यु को प्रभु के चरणों का अनुसरण करने से छल करके उसको ठग लूंगा।” श्रेणिक बोले- "वत्स! यद्यपि तू संसार से उद्विग्न हुआ है, तथापि मेरे राज्य को एक बार ग्रहण कर और मेरी दृष्टि को शांति प्रदान कर।" मेघ ने वैसा करना स्वीकार कर लिया। तब राजा ने महा-महोत्सव से उसे राज्य सिंहासन पर आसीन किया। इसके पश्चात राजा ने हर्ष के आवेश से पूछा कि अब मैं दूसरा तेरे लिए क्या करूँ ? मेघकुमार बोला- 'पिताजी! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हुए हों तो दीक्षा ग्रहण करने के इच्छुक मुझे कुत्रिक (सब वस्तु मिले वैसी दुकान) दुकान से रजोहरण और पात्रादिक मंगवा दो। राजा अपने ही वचनों से बंध गया था। इससे उसे दुःखी मन से भी वैसा करना पड़ा। पश्चात् मेघकुमार ने प्रभु के पास जाकर दीक्षा अंगीकार की। (गा. 384 से 388) पहली ही रात में मेघकुमार मुनि छोटे बड़े के क्रम से अंत में संथारे पर सो रहे थे, इससे बाहर जाते आते मुनियों के चरण बार बार उनके शरीर से त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 149
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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