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________________ (गा. " श्रेणिक राजा की धारिणी नाम की रानी को गजेन्द्र के स्वप्न से सूचित गर्भ रहा। अन्यदा उसे मेघवृष्टि में भ्रमण करने का दोहद हुआ। राजा की आज्ञा से अभयकुमार ने देवता की आराधना करके वह दोहद पूर्ण किया। पूर्ण समय पर उसने मेघकुमार नाम के पुत्र को जन्म दिया। (गा. 315 से 316) पूर्व में एक ब्राह्मण ने यज्ञ प्रारंभ किया था। उसमें नौकर रहने हेतु एक दास को उसने पूछा। दास ने कहा कि 'यदि ब्राह्मणों के भोजन करने के पश्चात् बढ़ी हुई रसोई खाने को दो तो मैं रहूँ, अन्यथा नहीं रहूँ। ब्राह्मण ने वह बात स्वीकारी, तब वह दास यज्ञ के बाड़े में रहा। बाद में शेष बची रसोई में जो मिलता, वह सर्व वह दास हमेशा साधु मुनिराज को वहराने लगा। उसके प्रभाव से वह दास देवता का आयुष्य बंध करके देवलोक में गया एवं देवगति से च्यवकर वह श्रेणिकराजा का नंदीषेण नामक पुत्र हुआ। वह यज्ञ करने वाला ब्राह्मण का जीव अनेक योनियों में परिभ्रमण करने लगा। (गा. 317 से 320) इधर एक अरण्य में विशाल हस्ति यूथ में, बल में दिग्गज का कुमार हो, वैसा एक यूथपति हाथी था। वह 'कोई भी अन्य युवा हाथी इन हथिनियों का स्वामी (इच्छुक) न हो, ऐसी बुद्धि से अपनी जिस जिस हथिनी को बच्चे होते, उनको जन्मते ही मार डालता था। उस यूथ की एक हथिनी के उदर में उस ब्राह्मण का जीव उत्पन्न हुआ। उस समय उस गर्भिणी हथिनी को विचार आया कि 'इस पापी यूथपति ने मेरे अनेक बच्चों को मार डाला है, तो अब मैं किसी भी उपाय से मेरे इस पुत्र की रक्षा करूंगी।' ऐसा निश्चय करके मानो वायु से उसका पैर रह गया हो, इस प्रकार वह हथिनी कपट से लूली लूली चलने लगी। फिर भी ‘यह हथिनी अन्य यूथपति की भोग न बने' ऐसा सोचकर धीरे धीरे चलता हुआ वह यूथपति उसकी राह देखने लगा। अनुक्रम से वह इतनी मंदगति से चलने लगी कि अर्ध प्रहर, एक दिन, दो दिन में आकर यूथपति को मिलने लगी। 'यह बिचारी अशक्त है, इसलिए मुझे लंबे समय में मिलती हैं। ऐसा सोचकर उस हाथी के दिल में विश्वास बैठ गया। “मायावी से कौन ठगा जा सकता है।" "एक बार यूथपति के दूर जाने पर वह हथिनी सिर पर तृण का पूला लेकर तापस के आश्रम में आई और पैरों से स्खलित चलती उस त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 145
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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