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________________ मनोहर दांत के श्रेणि से प्रकाश करते हुए कहा कि, 'हे देव! उस नंदा ने अभयकुमार नाम के एक पुत्र को जन्म दिया है।' तब ‘वह कैसा रूपवान् और कैसा गुणवान् है ? इस प्रकार राजा ने पूछा तब अभय बोला, 'स्वामी! वही मैं अभयकुमार हूँ। यह सुनते ही राजा ने उसे स्नेह से आलिंगन करके, उत्संग मैं बैठा कर और मस्तक सूंघकर स्नेह से स्नान कराता हो वैसे नयन के अश्रुजल से सिंचन करने लगा। फिर पूछा कि, हे वत्स! तेरी माता कुशल है ना? तब अभयकुमार ने अंजलि जोड़कर इस प्रकार विज्ञप्ति की कि 'हे स्वामी! भ्रमरी की तरह आपके चरण कमल का स्मरण करती मेरी आयुष्यमती माता अभी इसी नगर के बाहर उद्यान में ही है। यह सुनकर अमंद आनंद पाते राजा ने नंदा को लाने के लिए अभयकुमार को आगे करके सर्व सामग्री वहाँ भेजी और फिर मन में अति उत्कण्ठित होकर कमलिनी के पास राजहंस के समान स्वयं भी नंदा के पास गये। राजा ने उद्यान में आकर आनंदयुक्त चित्त से नंदा को देखा। परंतु वियोग के दुःख से नंदा के कंकण भी शिथिल हो गये थे। कपोल पर केश लटक रहे थे। नेत्र अंजनविहीन थे। सिर का केशपाश छूट गया था, मलिन वस्त्र धारण किये हुए थे और शरीर की कृशता से दूज के चंद्र कला जैसी दिखाई दे रही थी। ऐसी दशा में नंदा को मिलकर, आनंदित होकर राजा नंदा को महल में लिवा लाए एवं सीता को राम के समान उसे पटरानी पद दिया। अभय कुमार को अपनी बहन सुसेना की पुत्री एवं सर्व मंत्रियों की मुख्यता एवं अर्ध राज्य दिया। पिता पर पूर्ण भक्ति से स्वयं को एक सेवक तुल्य मानकर अभयकुमार ने अल्प समय में अपनी बुद्धि द्वारा दुःसाध्य राजाओं को भी साध लिया। (गा. 163 से 183) वसुधा रूपी वधू के मुकुट में माणक जैसी एवं लक्ष्मी से विशाल ऐसी वैशाली नामकी विशाल नगरी थी। उसमें इंद्र के समान अखंड आज्ञावाला और शत्रु राजाओं को सेवक बनाने वाला चेटक राजा राज्य कर रहा था। उसके पृथा नामकी रानी से सात पुत्रियाँ हुई, जो कि राज्य के सात अंग की अधिष्ठायिका सात देवियों हो, ऐसी लगती थी। उनके प्रभावती, मृगावती, शिवा, ज्येष्टा, सुज्येष्टा और चिल्लणा ये अनुक्रम से नाम थे। चेटक राजा श्रावक था एवं उसने अन्य के (अपने पुत्र, पुत्री का भी) विवाह करने की बाधा (सौगन्ध) ली थी। 136 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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