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________________ श्री महावीर स्वामिने नमः प्रथम सर्ग श्री महावीर स्वामी के पूर्व भव का विवरण दुःख पूर्वक वरण किये जाने वाले ऐसे रागादि शत्रुओं को निवारण करने में वीर, पूजनीय और योगीनाथ श्री महावीर स्वामी को मेरा नमस्कार हो । सुर-असुरों से पूजित और पुण्यजल के सरोवर रूप इन देवाधिदेव प्रभु के चरित्र का अब वर्णन करूंगा। (गा. 1 से 2 ) इस जंबूद्वीप के पश्चिम महाविदेह क्षेत्र के आभूषणरूप महावप्र नाम के विजय में जयंती नाम की नगरी थी । उस नगरी में भुजा के वीर्य से मानो नवीन वासुदेव उत्पन्न हुआ हो, ऐसा महासमृद्धिवान् शत्रुमर्दन नामक राजा था। उसके पृथ्वी प्रतिष्ठान नाम के गाँव में नयसार नाम का एक स्वामिभक्त ग्रामीण था । यद्यपि वह साधुजनों की सत्संगति से दूर था, तथापि स्वभाव से ही अपकृत्य पराङ्मुख, दूसरों के दोषान्वेषण में विमुख और गुण ग्रहण करने में तत्पर था। एक बार वह नयसार राजा की आज्ञा से श्रेष्ठ काष्ठ (लकड़ी) लेने हेतु पाथेय लेकर अनेकों गाड़िया जुता कर एक महाअटवी में गया । वहाँ लकड़ियाँ काटतेकाटते मध्याह्न का समय हो गया । जिस प्रकार सूर्य आकाश में अधिक प्रकाशित हो जाता है, उसी भांति उसके उदर में जठराग्नि प्रदीप्त हो गई, अर्थात् उसे भूख लगने लगी। उसके सेवक भोजन का समय जानकर मंडपाकार वृक्ष के नीचे उसके लिए उत्तम रसवती (भोजन) लाए । क्षुधा और तृषा से आतुर होने पर भी कोई अतिथि को भोजन कराकर खाना खाऊँ, ऐसा सोचकर नयसार अतिथि की में तलाश इधर उधर देखने लगा । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व ) (गा. 3 से 10 ) 1
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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