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________________ की पीड़ा का परिहार करने के इच्छुक प्राणी को असत्य न बोलकर सत्य ही बोलना चाहिए। मनुष्य के बहिः प्राण लेने जैसा अदत्त द्रव्य कभी भी नहीं लेना चाहिये । कारण कि उसका द्रव्य हरण करना उसका वध किया ही कहलाता हैं । बहुत जीवों का उपमर्दन करने जैसा मैथुन का सेवन कभी भी नहीं करना चाहिये। प्राज्ञ पुरुषों को परब्रह्म (मोक्ष) दायक बह्मचर्य ही धारण करना चाहिये । परिग्रह धारण नहीं चाहिये । अति परिग्रह के कारण अधिक भार से बैल के समान प्राणी विधुर होकर अधोगति के गर्त में गिर जाता है । प्राणातिपात आदि के दो भेद हैं। उसमें से सूक्ष्म को यदि न छोड़ा जाय तो सूक्ष्म के त्याग में अनुरागी होकर बादर का त्याग तो अवश्यमेव करना चाहिये । (गा. 39 से 47 ) इस प्रकार प्रभु की देशना श्रवण कर सर्व लोग आनंद में मग्न होकर चित्रवत् स्थिर हो गए। इसी समय में मगधदेश में आए गोबर नामक गांव में वसुभूति नामक एक गौतम गोत्री ब्राह्मण रहता था । उसके पृथ्वी नामकी स्त्री से इंद्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति नाम के तीन गौतम गोत्रीय पुत्र थे । कोल्लाक गांव में धनुर्मित्र और धम्मिल्ल नामके दो ब्राह्मण थे । उनके वारुणी और भद्दिला नाम की स्त्रियों से व्यक्त और सुधर्मा नाम के दो पुत्र थे। मौर्य गांव में धनदेव और मौर्य नाम के दो विप्र थे । वे परस्पर मौसेरे भाई होते थे । धनदेव के विजयदेवी नामकी पत्नि से मंडिक नामक एक पुत्र हुआ था, उसका जन्म होते ही धनदेव की मृत्यु हो गई । वहाँ के लोकाचार के अनुसार स्त्री रहित मौर्य विजयदेवी के साथ परणा “देशाचार लज्जा के लिए नहीं होता ।” अनुक्रम से मौर्य से विजय देवी को एक पुत्र हुआ, वह लोगों में मौयपुत्र इस नाम से ही प्रख्यात हुआ । इसी प्रकार विमलापुरी में देव नामक ब्राह्मण के जयंती नाम ही भार्या से अकंपित नामका एक पुत्र हुआ । कोशलानगरी में वसु नामक ब्राह्मण के नंदा नामक स्त्री से अचलभ्राता नामका पुत्र हुआ । वत्स देश में आए तुंगिर नाम के गाँव में दत्त नाम के ब्राह्मण के करूणा नाम की स्त्री से तैतर्य नामक पुत्र हुआ। राजगृह नगर में बल नामक ब्राह्मण के अतिभद्र नामक स्त्री से प्रभास नामक पुत्र हुआ। ये ग्यारह ही विप्रकुमार चार वेद रूपी सागर के पारगामी हुए थे एवं गौतम आदिक उपाध्याय होकर अन्य अन्य सैंकड़ों शिष्यों से परिवृत्त थे । (गा. 48 से 60 ) 116 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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