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________________ देखा और पहचाना कनकवती के समाचार के अनुसार वह यह चंद्रातप नामक विद्याधर है। वसुदेव ने सत्कार योग्य उसका आलिंगन किया, स्वागत पृच्छा करके यकायक आने का कारण पूछा। तब प्रौढ़ता से बुद्धिमानों में शिरोमणि चंद्रातप ने चंद्रातप जैसी शीतल वाणी द्वारा इस प्रकार कहना प्रारंभ किया हे यदुत्तम! आपकी कनकवती का स्वरूप निर्देश करने के पश्चात मैंने वहाँ जाकर आपका स्वरूप भी बता दिया है। हे नाथ! विद्या के बलसे मैंने आपको एक चित्रपट में आलेखित कर लिया था और उसके मुख-कमल के समक्ष सूर्य जैसा वह चित्रपट मैंने उसे अपर्ण किया। पूर्णिमा के चंद्र जैसे तुमको चित्रपट में देखकर उसके लोचनों में हर्ष से चंद्रकांत मणि की भांति अश्रुवारि ढुलकने लगे पश्चात मानो अपने विरह के संताप का भाग तुमको देना चाहती हो, वैसे आपके मूर्तिमंत पट को हृदय में धारण किया। यंत्र की पुतलिका की भांति नेत्रों से अश्रु वर्षा करती और गौरव से वस्त्र के छोर से उतारती वह अंजलि जोडकर प्रार्थना पूर्वक कहने लगी- अरे भद्र! मुझ जैसी दीन बाला की उपेक्षा मत करना, क्योंकि तुम जैसा मेरा कोई हितकारी नहीं है। मेरे स्वंयवर में उन पुरूषश्रेष्ठ को अवश्य ले आना। हे नाथ! आज कृष्ण दशमी है और आगामी शुकू पंचमी को दिन के प्रथम भाग में उसका स्वयंवर होने वाला है, तो हे स्वामिन्! उसके स्वंयम्बरोत्सव में आपका जाना योग्य है। आपके संगम की आशा रूप जीवनऔषधि से जीवंत वह बाला आपके अनुग्रह के योग्य है। वसुदेव बोले हे चंद्रातप! सांयकाले स्वजनों की अनुमति लेकर मैं ऐसा ही करूँगा। तू खुश होजा और मेरे साथ आने के लिए तू प्रमदवन में तैयार रहना कि जिससे उसके स्वयंवर में तू मेरे प्रयत्न का फल देखेगा। (गा. 74 से 88) वसुदेव के ऐसा कहने पर तत्काल ही वह युवा विद्याधर अंतर्धान हो गया। वसुदेव हर्षित होकर शय्या पर सो गये। प्रातःकाल में स्वजनों की अनुमति लेकर और प्रिया को जानकारी देकर वसुदेव पेढालपुर नगर में आए। राजा हरिशचंद्र ने सन्मुख आकर वसुदेव का लक्ष्मीरमण नामक उद्यान में आतिथ्य किया। अशोक पल्लव से रत्नवर्णीय गुलाब की सुगंध से शोभित केतकी के कुसुम से विकसित सप्तच्छद की खूशबु से सुगंधित कृष्ण इक्षु के समूह से व्याप्त और मोगरे की कलियों मे दंतुर ऐसे उस उद्यान में दृष्टि को विनोद देते वसुदेव 82 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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