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________________ की मांग की। यह यद्यपि राजा को अभिष्ठ नहीं थी तथापि अंगीकार करनी पड़ी। इसे स्वीकारने से हमेशा रसोइये वंशगिरी में एक एक मोर लाकर पकाकर उसे देते थे। एक बार पाक के लिए उन्होंने एक मयूर को मारा। उसे कोई मार्जरि आकर ले गया। तब रसोइयों को दूसरा मांस न मिलने से एक मृत बालक का मांस पकाकर उसका मांस सोदास को खाने के लिए दिया। भोजन करते समय सोदास ने रसोइयों से पूछा कि आज यह मांस इतना स्वादिष्ट कैसे है? रसोइयों ने यथार्थ कह सुनाया। यह सुन सोदास ने कहा कि अब रोज मयूर के स्थान पर नरमांस पकाकर देना। तब सोदास रोजाना स्वंय ही शहर में से बालकों का हरण करने लगा। इस बात की जानकारी राजा को होने पर उन्होंने कुमार को देश निकाला दे दिया। पिता के भय से वह भागकर दुर्ग में आकर रहने लगा। हमेशा ही वह पांच छः मनुष्यों को मार डालता था। ऐसे दुष्ट राक्षस को तुमने मार डाला। बहुत अच्छा किया। उनकी इस बात को सुनकर हर्ष से वसुदेव ने उन पांच सौ कन्याओं से विवाह किया। (गा. 352 से 365) वहाँ रात्रिनिवास करके प्रातःकाल वसुदेव कुमार अंचल गांव में आए। वहाँ एक सार्थवाह की पुत्री मित्र, से विवाह किया। पूर्व में किसी ज्ञानी ने वसुदेव इसके वर होंगे ऐसा कहा था। वहाँ से वसुदेव वेदसाम नगर में गये। वहाँ उस वनमाला ने उनको देखा, अतः वह बोली ओ देवर जी यहाँ आओ, यहाँ आओ। ऐसा कहकर अपने घर ले गई। उसने अपने पिता से कहा कि ये वसुदेव कुमार है अतः उसके पिता ने सत्कार पूर्वक कहा कि इस नगर में कपिल नामक राजा है उनके कपिला नाम की पुत्री है। हे महात्मन् पूर्व में किसी ज्ञानी ने गिरितट गांव में जब तुम थे तब कहा था कि तुम राज पुत्री के पति होवोगे। फिर उन ज्ञानी ने निशानी भी बताई थी कि वे स्फुलिंग वदन नामक तुम्हारे राजा का अश्व का दमन करेंगे। अतः तुमको लाने के लिए इंद्रजालिक इंद्रशर्मा नाम के मेरे जंवाई राजा को राजा ने भेजा था परंतु उसने आकर कहा कि वसुदेव कुमार बीच में से ही कहीं चले गये। आज सद्भाग्य से तुम यहां आ चढे हो, तो अब इस अश्व का दमन करो। तब वसुदेव कुमार ने अश्व का दमन किया और राज पुत्री कपिला से विवाह किया। कपिल राजा और साले अंशुमान ने वसुदेव को वहाँ रखा। वहाँ रहते हुए कपिला को कपिल नाम का पुत्र हुआ। (गा. 366 से 374) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 61
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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