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________________ आदि से उसे बड़ा किया। जैसे जैसे वह बड़ा हुआ वैसे वैसे कलहशील होकर लोगों के बालकों को मारने कूटने लगा। जिससे उस वणिक दंपति के पास प्रतिदिन लोगों के उपालंभ आने लगे। जब वह दस वर्ष का हुआ तब उस दंपतिने वसुदेव कुमार को उसे सेवक रूप से अर्पित किया। वह वसुदेव को अतिप्रिय हो गया। वहाँ वसुदेव के साथ रहकर सर्वकलाओं को सीखने लगा, साथ में ही खेलने लगा और साथ साथ यौवनवय को प्राप्त किया। इस प्रकार साथ रहते हुए वसुदेव और कंस एक राशि में आए हुए बुध और मंगल की भांति सुशोभित होने लगे। __ (गा. 71 से 79) इसी समय में शुक्तिमती नगरी के राजा वसु के सुवसु नामक पुत्र था जो कि भागकर नागपुर चला गया था उसके बृहद्रथ नाम का पुत्र हुआ और उसके जरासंध पुत्र हुआ। वह जरासंध प्रचंड शक्ति वाला और त्रिखंड भरत का स्वामी प्रतिवासुदेव हुआ। उन्होंने समुद्र विजय राजा को दूत भेजकर कहलाया कि वैताढ्यगिरी के पास सिंहपुर नामक नगर में सिंह जैसा दुःसह सिंहरथ नाम का राजा है, उसे बांधकर यहाँ ले आओ साथ ही कहलाया कि उसे बांधकर लाने वाले पुरुष को मैं अपनी जीवयशा नाम की पुत्री दूंगा और उसकी इच्छानुसार एक समृद्धिमान नगर दूँगा दूत के ऐसे वचन सुनकर वसुदेव कुमार ने जरासंध का वह दुष्कर शासन करने की समुद्रविजय के पास मांग की। कुमार की ऐसी मांग सुनकर राजा समुद्रविजय ने कहाकि हे कुमार! तुम जैसे सुकुमार बालक को अभी युद्ध करने जाने का अवसर नहीं है अतः ऐसी मांग करना उचित नहीं है। वसुदेव ने पुनः आग्रहभरी मांग की तब समुद्रविजय ने विपुल सेना के साथ उसे बडी मुश्किल से विदा किया। (गा. 80 से 87) वसुदेव शीघ्र ही वहाँ से चला। उसका ससैन्य आना सुनकर सिंहरथ भी सैन्य लेकर सन्मुख आया। उन दोनों के बीच भारी संग्राम हुआ। जब सिंहरथ ने वसुदेव की सेना को पराजित किया तब वसुदेव कंस को सारथि बनाकर स्वंय युद्ध करने हेतु उसके पास आया। सुर असुर की भांति क्रोध से परस्पर विजय की इच्छा से उन्होंने विविध प्रकार के आयुधों से चिरकाल तक भारी युद्ध किया। पश्चात महाभुज कंस ने सारथी पन को छोड़कर बडी परिधि से त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 4
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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