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________________ का विवाह तुम्हारे अधीन है।' ऐसे उनके वचन सुनकर मंत्रीकुमार मानो मूर्तिमान हर्ष हो वैसे हर्षित होता हुआ शीघ्र ही उनके साथ कुमार के पास आया। शुभ दिन में उन दोनों राजकुमारियों के साथ कुमार का पाणिग्रहण हुआ। कुछेक दिन वहाँ रहकर पूर्व की तरह दोनों राजकुमारियों को वहाँ छोड़ देशान्तर रवाना हो गया। (गा. 327 से 345) सूरकांत विद्याधर द्वारा दी गई मणि से जिनका इच्छित सदा पूर्ण हैं, ऐसे राजपुत्र और मंत्रीपुत्र चलते-चलते श्रीमंदिरपुर आए। कुछ दिन वहाँ रहने के पश्चात् एक दिन नगर में अतुल कोलाहल उत्पन्न हुआ। कवचधारी एवं शस्त्र उठाये अनेक सुभटों को उन्होंने देखा। राजपुत्र ने मंत्रीपुत्र को पूछा 'यह क्या हुआ है ?' तब मंत्रीपुत्र ने लोगों से जानकारी लेकर कहा कि - इस नगर में सुप्रभ नामक राजा है। उनपर किसी पुरुष ने छलपूर्वक राजमहल में प्रवेश करके छुरी द्वारा सख्त प्रहार किया है। उस राजा के उत्तराधिकारी कोई पुत्र नहीं है। अतः अपनी आत्मरक्षा करने के लिए सभी लोग आकुलव्याकुल होकर नगर में घूम रहे हैं। उसी का यह महान् कोलाहल हो रहा है। इस प्रकार मंत्रीपुत्र का वचन सुनकर राजा का छलपूर्वक घात करने वाले दुष्ट क्षत्रिय को धिक्कार है। ऐसा कहता हुआ कुमार अपराजित का मुख करुणा, ग्लानि से भर गया। (गा. 346 से 351) इसी समय कामलता नामकी एक प्रधान गणिका ने आकर राजमंत्री से कहा कि 'राजा का घाव संरोहण औषधी से ठीक हो जाएगा। अपने नगर में मित्र सहित कोई विदेशी पुरुष आये हुए हैं। वे उदार, धार्मिक, सतवंत और देवमूर्ति जैसे हैं। वस्तुतः वे कुछ भी उद्योग नहीं करता है, फिर भी वे सर्व अर्थ सम्पन्न है। उस महापुरुष के पास कोई चमत्कारी औषधी होनी चाहिए। यह सुनकर मंत्रिगण कुमार के पास आए और उसको विनतिपूर्वक राजा के पास ले गए। राजा उसके दर्शन से ही अपने आपको स्वस्थ हुआ मानने लगा। कृपालु कुमार ने राजा का घाव देखा। तब पहले से भी अधिक दया आ गई। उसने मित्र के पास से वह मणि और मूलिका लेकर, मणि को धोकर उस पानी में मूलिका को घिस कर घाव पर लगाया और मणि को धोकर उसका पानी राजा को पिलाया तो तत्काल ही राजा स्वस्थ हो गए। कुमार ने राजा से पूछा- हे त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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