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________________ आगे जाते-जाते एक कालिकादेवी मंदिर के निकट पहुँचा। अरे! यह पृथ्वी पुरुष बिना की हो गई क्या ? रात्रि में किसी का रुदन और कथन उनको सुनाई दिया । स्वर को पहचान कर, अरे! यह तो कोई स्त्री रो रही है । ऐसा निश्चय करके कृपालु कुमार शब्दपति बाण की तरह शब्द का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ा । वहाँ प्रज्वलित अग्नि के पास बैठी हुई एक स्त्री और तीक्ष्ण खड्ग को खींचकर खड़ा हुआ पुरुष दिखाई दिया। उन्होंने सुना, जो पुरुष हो इस अधम विद्याधर से मेरी रक्षा करे। ऐसे बोलती हुई कसाई के घर में रही भेड़ की तरह वह स्त्री पुनः क्रंदन करने लगी। यह देख कुमार ने उस पुरुष को आक्षेप पूर्वक कहा, 'अरे! पुरुषाधम ! मेरे साथ युद्ध करने के लिए तैयार हो जा। इस अबला पर अपना क्या पराक्रम दिखला रहा है? यह सुनकर इस स्त्री की भांति तुम पर भी मेरा पराक्रम होगा, ऐसा बोलता हुआ वह खेचर खड्ग खींच कर युद्ध करने के लिए कुमार के नजदीक आया। वे दोनों ही कुशल पुरुष परस्पर आघात को बचाते हुए बहुत देर तक खड्गाखड्गी युद्ध करने लगे। उसके बाद भुजा युद्ध करने लगे । बाहुयुद्ध में भी अपराजित को अजेय जानकर उस विद्याधर ने उसे नागपाश में बांध लिया कुमार तब कोप करके उन्मत्त हाथी की तरह जैसे बांधी हुई रस्सी को तोड़ देते हैं, वैसे उसने पाश को तोड़ दिया । फिर उस विद्याधर ने असुरकुमार की तरह क्रोध करके विद्या के प्रभाव से विविध प्रकार के आयुधों से कुमार पर प्रहार किया, परंतु पूर्वपुण्य के प्रभाव से और देह के सामर्थ्य से वे प्रहार कुमार को हराने में जरा भी समर्थ नहीं हुए। उस समय सूर्य उदयाचल पर चढ़ा, अतः कुमार ने खड्ग के द्वारा खेचर के मस्तक पर प्रहार किया, जिससे मूर्च्छित होकर वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसी समय मानों कुमार की स्पर्धा कर रहा हो वैसे कामदेव ने भी अपने बाणों के द्वारा उस स्त्री पर प्रहार किया । फिर कितनेक उपचारों द्वारा उस खेचर को सचेतन करके कुमार ने कहा कि, 'अभी भी तू समर्थ हो तो पुनः युद्ध कर ।' विद्याधर बोला, हे वीर! तुमने मुझे अच्छी तरह से जीत लिया है, इतना ही नहीं परंतु इस स्त्री के वध से और फलस्वरूप उससे प्राप्त होने वाले नरक से भी मुझे अच्छी तरह बचा लिया है। हे बंधु ! मेरे वस्त्र के पल्ले की बांठ में एक मणि और मूलिका बंधी हुई है। उस मणि के जल द्वारा मूलिका को घिसकर उसे मेरे व्रण पर लगा। कुमार ने वैसा ही किया तो वह तत्काल सज्ज हो गया । फिर कुमार के पूछने पर वह अपना वृत्तान्त कहने लगा । | 22 (गा. 294 से 310) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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