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________________ उस समय बलराम मुनि ने विचार किया कि 'यह शुद्ध बुद्धि वाला श्रावक लगता है, इससे ही जिस कार्य द्वारा स्वर्ग का फल उपार्जन हो सकता है, ऐसा यह भिक्षा मुझे देने को उद्यत हुआ है, यदि मैं यह भिक्षा नहीं लूंगा तो इसकी सद्गति में मैंने अंतराय दिया, माना जाएगा। इसलिए मैं यह भिक्षा ग्रहण कर लूँ । इस प्रकार विचार करके करूणा के क्षीरसागर जैसे वे मुनि जो कि अपने शरीर पर भी निस्पृह थे, तो भी उन्होंने उनके पास से भिक्षा ग्रहण की। वह मृग मुनि को और रथकार को देखकर मुख ऊँचा करके आँखों में अश्रु लाकर सोचने लगा कि 'अहो तप के तो आश्रयभूत और शरीर पर भी निस्पृह ऐसे ये महामुनि वास्तव में कृपानिधि है कि जिन्होंने इस रथकार पर अनुग्रह किया । अहो! इस वन को काटने वाले रथकार को भी धन्य है कि जिससे इन भगवंत महामुनि को अन्नपान से प्रतिलाभित करके अपना मनुष्य जन्म का महाफल प्राप्त किया। मात्र मैं ही एक मंदभागी हूँ कि जो ऐसा महातप करने में या ऐसे मुनि को प्रतिलाभित करने में समर्थ नहीं हूँ । इस तिर्यञ्चपन से दूषित ऐसे मुझे धिक्कार हो । इस प्रकार वे तीनों जन ज्योंहि धर्मध्यान में आरूढ़ हो रहे थे कि इतने में जिस वृक्ष के नीचे वे खड़े थे, उस वृक्ष का अर्धभाग टूटा होने से तेज हवा चलने से बाकी का भाग टूट कर वह वृक्ष उनके ऊपर गिरा। उसके गिरने से वे तीनों ही जनों की उसी समय मृत्यु हो गई । वे ब्रह्मदेवलोक में पद्मोत्तर नामक विमान में तीनों देव हुए। (गा. 62 से 70 ) सात सौ वर्ष तक संयम पर्याय पालकर स्वर्ग में गये । वहाँ उत्पन्न होते ही अवधिज्ञान द्वारा देखने पर तीसरे नरक में रहे हुए कृष्ण को उन्होंने देखा । इससे भ्रातृस्नेह से मोहित ऐसे बलराम देव उत्तर वैक्रिय शरीर धारण करके कृष्ण के पास आया और कृष्ण का आलिंगन करके बोला कि 'हे भाई! मैं तुम्हारा भाई राम हूँ और तुम्हारी रक्षा करने के लिए ब्रह्मदेवलोक से यहाँ आया हूँ । अतः कहो, तुम्हारी प्रीति के लिए मैं क्या करूँ ? ऐसा कहकर उन्होंने दोनों हाथों से कृष्ण को उठाया, तब वे पारे की तरह विशीर्ण हो होकर पृथ्वी पर बिखर गए और पुनः मिल गए। तब कृष्ण ने पहले आलिंगन से जानकर और फिर अपना नाम लेकर पुकारने से उद्धार करने से अच्छी तरह पहचान कर उठकर राम को संभ्रम से नमस्कार किया । बलराम बोले कि हे भ्राता ! श्री त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 302
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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