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________________ अनेक शिलाकुंडों के अंदर धर की खाल के जल के जैसे द्वारका के लोग पूर्व में तैयार की हुई सर्वप्रकार की मद्य ला-लाकर डालने लगे। __ (गा. 1 से 13) ___ उस समय सिद्धार्थ नाम के सारथि को शुभ भाव आने से उसने बलदेव को कहा, 'इस द्वारका नगरी की ओर यादव कुल की ऐसी दशा को मैं किस प्रकार देख सकूँगा? इसलिए मुझे प्रभु के चरण की शरण में जाने दो कि जिससे मैं वहाँ जाकर व्रत ग्रहण करूँ।' मैं जरा भी कालक्षेप सहन नहीं कर सकता हूँ। बलदेव नेत्र में अश्रु लाकर बोले- हे अनघ! हे भ्रात! तू तो उपयुक्त कहता है, परंतु मैं तुझे छोड़ने में समर्थ नहीं हूँ, तथापि मैं तुझे विदाई देता हूँ। परंतु यदि तूं तपस्या करके देव बने, तो जब मुझ पर विपत्ति का समय आवे तब तू भ्रातृस्नेह याद करके मुझे प्रतिबोध देना। बलभद्र के इस प्रकार के वचन सुनकर बहुत अच्छा ऐसा कहकर सिद्धार्थ ने प्रभु के पास दीक्षा ले ली और छः महीने तक तीव्र तपस्या करके स्वर्ग में गया। (गा. 14 से 18) ___ इधर द्वारका के लोगों ने जिस शिलाकुंड में मदिरा डाली थी, वहाँ विविध वृक्षों के सुगंधी पुष्प गिरने से वह और अधिक स्वादिष्ट हो गयी। एक वक्त वैशाख महिने में शांब कुमार का कोई सेवक घूमता-घूमता वहाँ आया, उसे प्यास लगी थी, तो उसने उस कुंड में से मदिरा पी। उसके स्वाद से हर्षित होकर वह मदिरा की एक मशक भर उसे लेकर शांब कुमार के घर आया। उसने उस मदिरा को शांब कुमार को भेंट दी। उसे देखते ही वह कृष्ण कुमार अत्यन्त हर्षित हुआ। पश्चात् तृप्ति पर्यन्त उसका आकंठपान करके वह बोला कि ‘ऐसी उत्तम मदिरा तुझे कहाँ से मिली? उसने वह स्थान बता दिया। तब दूसरे ही दिन शांब यादवों के दुर्दान्त कुमारों को लेकर कादम्बरी गुफा के पास आया। कादंबरी गुफा के योग से विविध प्रकार की स्वादिष्ट मदिरा को देखकर तृषित मनुष्य जैसे नदी को देखकर हर्षित होता है, उसी भांति वे अत्यन्त हर्षित हुए। वहाँ पुष्पवाले वृक्षों की वाटिका में बैठकर शांब कुमार ने अपने भाईयों और भ्रातृपुत्रों के साथ मदिरा पान गोष्ठी रची। अपने सेवकों से मंगवा मंगवा कर वे मदिरा पीने लगे। दीर्घ समय से प्राप्त हुई और अनेक सुगंधित और स्वादिष्ट द्रव्यों से संस्कारित उस मदिरा पान करके वे तृप्त नहीं हुए। वहाँ से क्रीड़ा करते 288 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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