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________________ देवता रहे हुए हैं। किसी स्थान पर अपने तरंग से उस मेघ का भी कमंडल की तरह उद्वर्तन करता है। यह समुद्र मन से भी अलंघ्य है। तो इसे देह से कैसे उल्लंघन कर सकेंगे? पांडवों के ऐसे वचन सुनकर 'तुमको क्या चिंता है?' ऐसा कहकर शुद्ध हृदय वाले कृष्ण ने उसके तट पर बैठकर उसके अधिष्ठायिक सुस्थित नामक देव की आराधना की। तत्काल वह देव प्रकट होकर बोला- 'मैं क्या कार्य करूँ? कृष्ण ने कहा कि- हे लवणोदधि के अधिष्ठायक देव! पद्मनाभ राजा ने द्रौपदी का हरण किया है, तो जिस प्रकार भी घातकीखंड में से द्रौपदी को ले जाकर जैसे उसे सौंपी है, वैसे ही मैं लाकर उसे आपको सौंप दूं अथवा यह बात जो आपको नहीं रुचती हो तो बल, वाहन सहित इस पद्मनाभ को समुद्र में फेंककर द्रौपदी को लाकर आपको अर्पण करूँ। कृष्ण ने कहा कि ऐसा करने की जरूरत नहीं है।' मात्र इन पांडवों और मैं इन छः पुरुषों के द्वारा रथ में बैठकर जाया जाय वैसा जल में अनाहत मार्ग दे दो कि जिससे हम वहाँ जाकर उस बेचारे को जीत कर द्रौपदी को यहाँ ले जावें। यह मार्ग हमको यश देने वाला है। तब उस सुस्थित देव ने वैसा ही किया। तब कृष्ण पांडव सहित स्थल की तरह समुद्र का उल्लंघन करके अमरकंका नगरी में पहुँचे। वहाँ उस नगर के बाहर उद्यान में रहकर कृष्ण ने दारुक सारथि को समझाकर पद्मनाभ राजा के पास दूत के रूप में भेजा। दारुक तुरंत ही वहाँ गया और पद्म के चरण पीठ को अपने चरण से दबाता, भयंकर भृकुटी चढ़ाता और भाले के अग्रभाग पर से कृष्ण के लेख को देता हुआ पद्म को इस प्रकार बोला- 'अरे पद्म राजा! जिसे कृष्ण वासुदेव की सहायता है, ऐसी पांडवों की स्त्री द्रौपदी को जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में से तू हरण करके ले आया है। वे कृष्ण पांडवों के साथ समुद्र के द्वारा दिये गए मार्ग से यहाँ आ गये हैं, इसलिए अब जीना चाहता है तो शीघ्र ही वह द्रौपदी कृष्ण को सौंप दे। पद्मराजा बोला- 'यह कृष्ण तो जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र के वासुदेव है, यहाँ तो ये छः ही जने मेरे सामने क्या है ? इसलिए जा, उनको युद्ध के लिए तैयार कर। दारुक ने आकर कृष्ण को सब कथन कह सुनाया। इतने में तो पद्मनाभ राजा भी युद्ध का इच्छुक होकर तैयारी करके सेना लेकर नगर के बाहर निकला। समुद्र की तरंग की भांति उसके सैनिक उछल उछलकर टूट कर गिरने लगे। उस समय कृष्ण ने नेत्र को विकसित करके पांडवों को कहा कि तुम इस पद्मराजा के साथ युद्ध करोगे या मैं युद्ध करूँ, वह रथ में बैठकर देखोगे? पांडवों ने कहा- प्रभु! या तो आज पद्मनाभ 270 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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