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________________ दशम सर्ग पांडव कृष्ण की कृपा से अपने हस्तिनापुर नगर में रहते और द्रौपदी के साथ बारी के अनुसार हर्ष से क्रीड़ा करते थे। एक बार नारद घूमते-घूमते द्रौपदी के घर आए। तब यह अविरत है ‘ऐसा समझकर द्रौपदी ने उनका सत्कार किया नहीं। इससे यह द्रौपदी किस प्रकार दुःखी हो ऐसा सोचते हुए नारद क्रोधित होकर उसके घर में से निकले। परन्तु इस भरतक्षेत्र में तो कृष्ण के भय से उसका कोई अप्रिय करे वैसा दिखाई नहीं दिया। इसलिए वे घातकीखंड के भरतक्षेत्र में गये। वहाँ चम्पानगरी में रहने वाला कपिल नामक वासुदेव का सेवक पद्मनाभ का राजा, अमरकंका नगरी का स्वामी जो व्याभिचारी था, उसके पास नारद आए। तब राजा ने उठकर नारद को सन्मान दिया और अपने अंतःपुर में ले गये। वहाँ अपनी सर्व स्त्रियाँ बताकर कहा कि 'हे नारद! आपने ऐसी स्त्रियाँ किसी अन्य राजा के अंतःपुर में देखी हैं ? उस समय नारद ने इससे मेरा इरादा सिद्ध होगा ऐसा विचार कर कहा कि- 'राजन्! कुँए के मेंढ़क की तरह ऐसी स्त्रियों से तू क्या हर्षित होता है ? जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में हस्तिनापुर नगर में पांडवों के घर द्रौपदी नामकी स्त्री है, वह ऐसी स्वरूपवान है कि उसके समक्ष ये तेरी सारी स्त्रियाँ दासी समान हैं। ऐसा कहकर नारद वहाँ से उड़कर अन्यत्र चले गए। नारद के जाने के बाद पद्मनाभ राजा ने द्रौपदी को प्राप्त करने की इच्छा से अपने पूर्व संगति वाले एक पातालवासी देव की आराधना की। इससे उस देव ने प्रत्यक्ष होकर कहा कि 'हे पद्मनाभ! कहो, तुम्हारा क्या काम करूँ? तब पद्म ने कहा, 'द्रौपदी को लाकर मुझे अर्पण करो।' देव ने कहा कि 'ये द्रौपदी पांडवों को छोड़कर अन्य किसी को चाहती नहीं है।' परंतु तेरे आग्रह से मैं उसे ले आता हूँ। ऐसा कहकर वह देव तत्काल हस्तिनापुर आया और अस्विप्नी निद्रा द्वारा सबको निद्रावश करके निद्राधीन हुई द्रौपदी 268 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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