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________________ अच्युतेन्द्र ने नंदावर्त उठाया और अन्य चरमेन्द्र आदि इन्द्र थे। वे अनेक प्रकार के शस्त्रधारी होकर आगे चले। इस प्रकार पिता और दशार्द्ध, शिवादेवी आदि माताएँ, और रामकृष्णादि बंधुओं से घिरे हुए महामनस्वीर भगवंत राजमार्ग पर चल गये। जब प्रभु उग्रसेन के गृह के नजदीक आये, तब उनको देखकर राजीमति सद्य नवीन शोक उत्पन्न होने पर बारबार मूर्छित होने लगी। प्रभु तो अविच्छिन्न गमन करते हुए उज्जयंतगिरि के आभूषण रूप और नंदनवन जैसे सहस्राम्रवन नामक उपवन में पधारे। (गा. 236 से 245) उस समय नये खिले हुए केतकी के पुष्पों से मानो स्मितहास्य करता हो और गिरे हुए अनेक जामुन के फलों से मानो वहाँ की पृथ्वी नीलमणि से बंधी हुई हो, ऐसा वह वन लगता था। अनेक स्थानों पर कदम्ब के पुष्पों की शय्या में उन्मत्त भँवरें सोए हुए थे, मयूर नृत्य करते हुए ध्वनि से तांडव कर रहे थे। कामदेव के अस्त्र के अंगारे हों वैसे इंद्रवर्ण के पुष्प खिल रहे थे। मालती तथा जूही के पुष्पों की सुगंध लेने के लिए अनेक पथिक जन स्वस्थ होकर बैठे थे। ऐसे अति सुंदर उद्यान में आकर प्रभु शिबिका में से नीचे उतरे। पश्चात् शरीर पर से सर्व आभूषण उतारे। तब इंद्र ने आभूषण उनसे लेकर कृष्ण को दिये। जन्म से तीन वर्ष जाने के पश्चात् श्री नेमिप्रभु ने श्रावण मास की शुक्ल षष्ठी को पूर्वाह्न काल (दोपहर के आगे) चंद्र का चित्रा नक्षत्र में आने पर छठ तप करके पंचमुष्टि लोच किया। शक्रेन्द्र ने केश लिये और प्रभु के स्कंध पर देवदूष्य वस्त्र रखा। तब शक्रेन्द्र ने उन केशों को क्षीरसागर में बहा दिया और आकर सारा कोलाहल शांत किया। तब प्रभु ने सामायिक उच्चारण किया। उसी समय जगद्गुरु को चौथा मनःपर्यव ज्ञान उत्पन्न हुआ और क्षणभर के लिए नारकियों को भी सुख हुआ। नेमिनाथजी के पीछे एक हजार राजाओं ने भी दीक्षा ली। तब इंद्र और कृष्ण प्रमुख आदि प्रभु को नमन करके अपने-अपने स्थान पर गये। (गा. 246 से 2 5 4) __दूसरे दिन प्रभु ने गोष्ठ में रहने वाले वरदत्त नामके ब्राह्मण के घर परमात्र से पाखा किया। उस समय उसके घर में सुगंधित जल और पुष्प की वृष्टि, आकाश में दुंदुभि की गंभीर ध्वनि, चेलोत्क्षेप (वस्त्र की वृष्टि) और वसुधारा यानि द्रव्य की वृष्टि आदि पाँच दिव्य देवताओं द्वारा प्रकट किये। पश्चात् घाती 258 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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