SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दानवों की तरह उनको रूंधकर उनके साथ युद्ध करने लगे। उनके साथ बलराम कृष्ण का ऐसा घोर युद्ध जमा कि जिसमें परस्पर अस्त्रों के छेदन से आकाश से बेशुमार चिनगारियों की वृष्टि होने लगी। अनुक्रम से राम ने जरासंध के अट्ठाईस पुत्रों को हल से खींचकर मूसल द्वारा चावल की तरह पीस डाला अर्थात् वे मरण को प्राप्त हुए। तब यह गोप उपेक्षा करने पर भी अद्यापि मेरे पुत्रों का हनन किये जा रहा है' ऐसा बोलकर जरासंध ने वज्र जैसी गदा का राम के ऊपर प्रहार किया, उस गदा के प्रहार से राम ने रूधिर का वमन किया, जिससे यादवों के सम्पूर्ण सैन्य में हाहाकार हो गया। पुनः जब राम पर प्रहार करने जरासंध आ रहा था, तब श्वेतवाहन वाला कनिष्ठ कुंतीपुत्र अर्जुन बीच में आ गया। राम की अवस्था को देखकर कृष्ण को क्रोध चढ़ा। इससे उसने तत्काल होंठ कांटते हुए भी अपने आगे रहे हुए जरासंध के उनहत्तर पुत्रों को मार डाला। तब यह राम तो मेरी गदा के प्रहार से मर ही जाएगा और इस अर्जुन को मारने से क्या होगा? इससे तो कृष्ण को ही मारूं ऐसा विचार करके जरासंध कृष्ण की ओर दौड़ पड़ा। उस समय अब तो कृष्ण मरे ऐसा सर्वत्र ध्वनि प्रसर गई। यह सुनकर मातलि सारथि ने अरिष्टनेमि के प्रति कहा, हे स्वामिन्! अष्टापद के समक्ष हाथी के बच्चे के जैसे त्रिभुवनपति ऐसे आपके पास इस जरासंध की क्या हस्ति है ? परंतु आप यदि जरासंध की उपेक्षा करेंगे तो वह इस पृथ्वी को यादव विहीन ही कर देगा। इसलिए हे जगन्नाथ! आप की लेशमात्र लीला तो बताओ। यद्यपि आप जन्म से ही सावध कर्म से विमुख हो, तथापि शत्रुओं से आक्रामित आपके कुल की इस समय आपको उपेक्षा करना योग्य नहीं है। इस प्रकार मातलि सारथि के कहने से श्री नेमिनाथ ने कोप रहित हाथ में पौरंदर नाम का शंख लेकर मेघ गर्जना का भी उल्लंघन करे, वैसा नाद किया। भूमि और अंतरिक्ष को भी भर दे ऐसे उसकी तीव्र ध्वनि से शत्रु लोग क्षोम को प्राप्त हुए और यादवों का सैन्य स्वस्थ होकर युद्ध करने में समर्थ हो गया। तब नेमिनाथ की आज्ञा से मातली सारथि कुलाल के चक्र के समान सागर में आवर्त जैसे अपना रथ रणभूमि में घुमाने लगे। उस समय प्रभु नवीन मेघ की तरह इंद्रधनुष का आकर्षण करके शत्रुओं का त्रास करते हुए बाणवृष्टि करने लगे। उस बाणवृष्टि द्वारा किसी की ध्वजा तोड़ी, किसी के धनुष काटे, किसी का रथ भग्न किया, तो किसी के मुकुट तोड़ दिये। उस समय सामने प्रहार करने की बात तो दूर रही परंतु कल्पांतकाल के सूर्य जैसे लगते प्रभु के 234 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy