SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्मी हुआ। किन्तु, पद्म इन सबसे विपरीत स्वभाव का हुआ। एक समय अभद्र बुद्धिवाली भद्रा रानी ने विचार किया कि “जब तक सुमित्र जीवित है, तब तक मेरे पुत्र को राज्य नहीं मिलेगा' ऐसा सोचकर उसने सुमित्र को तीक्ष्ण जहर दे दिया। विष के प्रभाव से सुमित्र मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा और समुद्र में लहरों की तरह विष का वेग उसके शरीर में फैल गया। सुग्रीव राजा को समाचार मिलते ही वे संभ्रमित हो शीघ्र मंत्रियों के साथ वहाँ पर आये और मंत्र-तंत्रादि अनेक उपचार करने लगे फिर भी विष का असर किंचित् मात्र भी कम नहीं हुआ। भद्रा ने सुमित्र को जहर दिया, संपूर्ण नगर में यह बात फैल गई। अपने पाप के प्रगट होते देख भद्रा वहाँ से अन्यत्र भाग गई। राजा ने पुत्र के निमित्त अनेक प्रकार की जिनपूजा और शांतिहेतू-पौष्टिक कर्म कराए पुत्र के सद्गुणों का स्मरण कर करके राजा अविच्छिन्न रूप से विलाप करने लगा और सामंत, मंत्रिगण भी निरुपाय होकर उसी प्रकार करने लगे। ___ (गा. 15 2 से 160) ___ इसी समय चित्रगति विद्याधर आकाश में क्रीड़ा हेतु भ्रमण कर रहा था, वह विमान में बैठकर वहाँ आ पहुँचा। उसने पूरे ही नगर को शोकातुर देखा। विष संबंधी सम्पूर्ण वृत्तांत जानकर विमान से नीचे उतरा एवं विद्या से मंत्रित जल को कुमार पर सिंचन किया। कुमार ने तत्क्षण नेत्र खोले। स्वस्थ होकर सुमित्र बैठ गया। यह क्या है ? पूछने लगा। कहा है- ‘मंत्रशक्ति निरवधि है।' (गा. 161 से 163) राजा ने सुमित्र से कहा, 'हे वत्स! तेरी वैरिणी छोटी माता भद्रा ने तुझे विष दिया था एवं इस निष्कारण बंधु समान महापुरुष ने विष का शमन कर दिया। सुमित्र ने अंजलि बनाकर करके चित्रगति से कहा, 'परोपकार बुद्धि से ही आपका उत्तम कुल मुझे ज्ञात तो हो गया, फिर भी अपना कुल बतलाकर मुझ पर अनुग्रह करो, क्योंकि महान् पुरुषों का वंश जानने को किसका मन उत्कंठित नहीं होता? चित्रगति राजा के साथ आए हुए उसके मंत्री पुत्र ने सबको श्रवण में सुखदायक कुलादिक का वृत्तांत कह सुनाया। यह सुनकर सुमित्र हर्ष से बोला, 'आज मुझपर विष देने वाले ने अत्यंत उपकार किया है, नहीं तो आप जैसे महात्मा का संयोग कहाँ से होता? और फिर आपने मुझे जीवनदान ही नहीं दिया, वरन् पच्चक्खाण और नवकार मंत्र से रहित होने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 13
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy