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________________ पीछे पीछे आया। आगे जाने पर शांब देवालय में घुसा और उसने उसे भी अंदर आने को कहा। आहीरणी ने कहा, 'मैं अंदर नहीं आऊँ, मुझे यहाँ पर ही मूल्य दे दो।' यहाँ तुझे अवश्य ही आना चाहिये, ऐसा कहकर लता को जैसे हाथी खीचें वैसे उसके हाथ पकड़ कर खींचने लगा। तब अरे! मेरी स्त्री को कैसे पकड़ रहा है ? ऐसा बोलता हुआ आहीर उसे मारने दौड़ा। उसी समय कृष्ण और जांबवती प्रकट हुए। अपने माता पिता को देखकर शांब मुख ढंक कर भाग गया। हरि ने इस प्रकार शांब की दुष्ट चेष्टा जांबवती को बताई। दूसरे दिन कृष्ण ने जबरन शांब को बुलाया। तब वह लकड़ी की खीला गढ़ता गढ़ता वहाँ आया। कृष्ण ने उससे खीला गढ़ने का कारण पूछा, तब वह बोला, जो कल की मेरी बात करेगा, उसके मुख में यह कीला डालना है। इसलिए मैं कील गढ़ रहा हूँ। यह सुनकर कृष्ण ने शांब के निर्लज्ज और कामवश इधर उधर जैसे तैसे स्वेच्छा से व्यवहार करता हैं, ऐसा जानकर उसे नगरी से बाहर निकाल दिया। जब शांब नगरी से बाहर चला तब उस समय प्रद्युम्न ने अंतर में स्नेह धरकर पूर्व जन्म के बंधुरूप शांब को प्रज्ञप्ति विद्या दी। तब प्रद्युम्न भी भीरूक को हमेशा छेड़ने लगा। इससे एक बार सत्यभामा ने कहा कि 'अरे दुर्भति! तू भी शांब की तरह नगरी के बाहर क्यों नहीं निकल जाता? प्रद्युम्न ने कहा- 'मैं बाहर निकल कर कहाँ जाऊँ ? तब सत्यभामा ने कहा कि 'श्मशान में जा।' वह बोला कि 'जब मैं शांब को हाथ से पकड़ कर गांव में लाऊँ, तब मुझे भी आना है।' जैसी माता की आज्ञा ऐसा कहकर प्रद्युम्न तुरंत श्मशान में चला गया। शांब भी घूमता घूमता वहाँ आ पहुँचा। तब दोनों भाई श्मशान भूमि में रहे और नगरी के जो भी मुर्दे आवे उन दागियों के पास से अधिक कर लेकर फिर उनको दहन करने देते। (गा. 85 से 106) इधर सत्यभामा ने भीरूक के लिए बहुत ही प्रयत्न करके निन्याणवें कन्याएं तैयार की। फिर सौ पूरी करने के लिए एक और कन्या की इच्छा करने लगी। ये समाचार प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा जानकर प्रद्युम्न ने विद्याबल से एक बड़े सैन्य की विकुर्वणा की। और स्वयं जितशत्रु नाम का राजा हुआ। शांब देव कन्या जैसा रूप धारकर प्रद्युम्न की कन्या बनी। एक बार सखियों के साथ घिरी हुई क्रीड़ा करती हुई उस कन्या को भीरूक की धायमाता ने देखा। यह हकीकत 216 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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