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________________ सप्तम सर्ग शांब और प्रद्युम्न का विवाह जरासंध का वध द्वारिका में प्रद्युम्न के आगमन का महोत्सव प्रवर्तमान था, उस समय दुर्योधन राजा ने इस प्रकार विज्ञप्ति की कि स्वामिन ! मेरी पुत्री और आपकी पुत्रवधू का अभी कोई हरण करके ले गया है। इसलिए उसकी तलाश कराओ कि जिससे आपके पुत्र भानुक के साथ उसका विवाह करें। कृष्ण बोले, मैं सर्वज्ञ नहीं हूँ, यदि सर्वज्ञ होता तो क्या हरण करके गये रूक्मिणी के पुत्र को नहीं जानता? उस समय प्रद्युम्न ने कहा कि 'मैं प्रज्ञप्ति विद्या के द्वारा उस बात को जानकर अभी उसको यहाँ ले आता हूँ ।' ऐसा कहकर स्वयंवरा होकर आई उस कन्या को वह ले आया । कृष्ण वह कन्या प्रद्युम्न को देने लगे तब यह तो मेरे छोटे भाई की स्त्री होने से यह तो वधू समान है। ऐसा कह प्रद्युम्न ने उसे ग्रहण नहीं किया और भानुक के साथ उसका विवाह करा दिया। उसे पश्चात् प्रद्युम्न की इच्छा न होने पर भी कृष्ण ने बड़े महोत्सव से अनेक खेचरों की और राजाओं की कन्याओं का प्रद्युम्न से विवाह करवाया । पश्चात् रूक्मिणी और कृष्ण ने प्रद्युम्न को लाने में उपकारी नारद की पूजा करके विदा किया। (गा. 1 से 7 ) एक बार प्रद्युम्न की विपुल समृद्धि देखकर और उसकी श्लाघा (प्रशंसा) आदि सुनकर सत्यभागा कोपगृह में जाकर जीर्ण शय्या पर सो गई। वहाँ कृष्ण आए और उसे देखकर संभ्रम से बोल उठे 'हे सुंदरी! किसने तुम्हारा अपमान किया है, जो तुम इस प्रकार दुःखी हो रही हो ?' सत्यभामा बोली 'मेरा किसी ने अपमान नहीं किया। परन्तु यदि मेरे प्रद्युम्न जैसा पुत्र नहीं होवे तो मैं अवश्य ही मर जाऊँगी। उसका आग्रह देखकर कृष्ण ने नैगमेषी देव को लक्ष्य में रखकर अष्टभक्त युक्त पौषधव्रत ग्रहण किया । नैगमेषी देव ने प्रकट होकर बोला कि 'मैं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 210
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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