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________________ मेरा उदर दुर्बल हो गया है, इससे मुझे क्षीर भोजन दो। तब रूक्मिणी खीर बनाने के द्रव्य की शोध में तत्पर हो गई। (गा. 452 से 460) उस समय साधु ने पुनः कहा मैं बहुत भूखा हूँ, तो जो कोई भी द्रव्य हो उससे खीर बना दो। तब रूक्मिणी पहले से तैयार करे मोदक की खीर बनाने लगी। परंतु उन मुनि के विद्या के प्रभाव से अग्नि प्रज्वलित नहीं हुआ। जब रूक्मिणी को अति खेदित हुआ देखा तो मुनि ने कहा, जो खीर बन सके ऐसा ना हो तो इस मोदक से ही मेरी क्षुधा को शांत करो। रूक्मिणी बोली भगवान्! ये मोदक कृष्ण के बिना अन्य कोई पचा नहीं सकता, इसलिए तुमको देकर मैं ऋषिहत्या का पाप नहीं करूं। मुनि बोले- तपस्या के प्रभाव से मुझे कुछ भी दुर्जर न पचे जैसा नहीं है। तब रूक्मिणी शंकित चित से उनको मोदक देने लगी। जैसे जैसे वह मोदक देती गई वैसे वैसे मुनि जल्दी जल्दी खाते गये। तब वह विस्मित होकर बोली महर्षि! आप तो बहुत बलवान लगते हो। (गा. 461 से 466) इधर सत्यभामा रूडू बुडु मंत्र को जप रही थी। वहाँ बागवान पुरुषों ने आकर कहा, स्वामिनि! किसी पुरूष ने आकर अपने उद्यान को फल रहित कर दिया। किसी ने आकर बताया कि घास की दुकानों में से घास खत्म कर दिया है। किसी ने जाहिर किया कि उत्तम जलाशयों को निर्जल कर दिया और किसी ने आकर कहा भानुक कुमार को अश्व पर से किसी ने गिरा दिया। यहसुनकर सत्यभामा ने दासी को कहा कि अरे! वह ब्राह्मण कहाँ है? तब दासियों ने जो घटना बनी थी, वह यथार्थ कह सुनाई। तब खेद पाती हुई, फिर भी अधर्म से सत्यभामा ने केश लाने के लिए हाथ में पात्र देकर दासियों को रूक्मिणी के पास भेजा। (गा. 467 से 471) उन्होंने आकर रूक्मिणी से कहा, हे मानिनी! तुम्हारे केश शीघ्र ही हमको दो। हमारी स्वामिनी ने शीघ्र ही ऐसा करने की आज्ञा की है। यह सुनकर उस कपटी साधु ने उन दासियों के और सत्यभामा के पूर्व में मुंडित केशों द्वारा उस पात्र को भरकर उनको सत्यभामा के पास भेज दिया। सत्यभामा ने उनको केश बिना की देखकर पूछा, कि यह क्या हुआ? तब दासियों ने कहा कि क्या आप त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 207
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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