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________________ उस समय नारद ने कहा हे वत्स! यह तेरे पिता की द्वारिकापुरी आ गई, जिसे कुबेर ने रत्नों से निर्मित करके धन से पूरी है। प्रद्युम्न बोला मुनिवर! आप क्षणभर इस विमान में यही पर रहो। मैं नगरी में जाकर कुछ चमत्कार करूं। नारद से उसे स्वीकार किया। प्रद्युम्न आगे चला। वहाँ तो सत्यभामा के पुत्र के विवाह की बारात आती हुई उसने देखी। तब प्रद्युम्न ने उसमें से कन्या का हरण कर लिया और जहाँ नारद थे वहाँ लाकर रख दिया। तब नारद ने कहा वत्से! भयभीत मत हो यह भी कृष्ण का ही पुत्र है। तब प्रद्युम्न एक वानर को लेकर वन में गया। उसने वनपालकों को कहा कि यह वानर मेरा क्षुधातुर है, इसलिए इसे फलादिक दो। वनपालक बोले- यह उद्यान भानुक कुमार के विवाह के लिए रखा हुआ है। इसलिए तुझे कुछ भी बोलना या मांगना नहीं है। तब प्रद्युम्न कुमार बहुत से द्रव्य का उसे लोभ देकर उस उद्यान में घुसा और अपने उस मायावी वानर द्वारा संपूर्ण उद्यान को फलादिक से रहित कर दिया। तब एक जातिवंश अश्व लेकर वणिक बन कर तृण बेचने वाले की दुकान पर गया और अपने अश्व के लिए उसने उस दुकानदार से घास माँगा। (गा. 410 से 417) ___ उसने भी विवाह कार्य के लिए घास के लिए मना कर दिया तब उसे भी द्रव्य का लोभ देकर विद्याबल से सर्व दुकान तृण रहित कर दी। इस प्रकार स्वादिष्ट जल वाले जो जो स्थान थे, वे सब जल रहित कर दिये। स्वंय बाद में अश्वक्रीडा करने के स्थान में जाकर अश्व खिलाने लग गया। वह अश्व भानुक ने देखा तब उसके पास जाकर पूछा यह अश्व किसका है? प्रद्युम्न ने कहा, यह मेरा अश्व है। भानुक ने कहा, यह अश्व क्या मुझे दोगे? जो तुम मांगोगे वह मूल्य मैं इसका दूँगा। प्रद्युम्न ने कहा, आप परीक्षा कर लो नहीं तो मैं राजा के अपराध में आ जाऊँगा। भानुक ने इसे कबूल किया और परीक्षा करने के लिए उस अश्व पर स्वंय बैठा। अश्व की चाल देखने के लिए उसे चलाते ही अश्व ने भानुक को पृथ्वी पर पटक दिया। तब नगरजनों ने जिसका हास्य किया ऐसा प्रद्युम्न मेंढे पर बैठकर कृष्ण की सभा में आया। और सभी सभासदों को हंसाने लगा। कभी ब्राह्मण होकर मधुर स्वर से वेदपाठ करता हुआ द्वारका के चौराहों पर और गलियों गलियों में घूमने लगा। (गा. 418 से 425) 204 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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