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________________ अरिष्टनेमि प्रभु का चरित्र निर्देश दिया। इस प्रकार मनः पर्यव ज्ञान और अवधिज्ञान के द्वारा जानकर उन मुनि महाराज ने विक्रमधन राजा से कहा कि, 'यह तुम्हारा पुत्र धनकुमार इस भव से लेकर उत्तरोत्तर उत्कृष्ट ऐसे नौ भव करेगा और नवें भव में ये इस भरत क्षेत्र में यदुवंश में बाइसवें तीर्थंकर होंगे।' इस प्रकार मुनिश्री के वचन सुनकर सभी को अतिशय हर्ष हुआ और तब से सर्व को जिनधर्म में आदर का भाव हुआ। राजा विक्रमधन आदि सर्वमुनि श्री को वंदन करके अपने आवास पर आए और मुनिश्री भी विहारक्रम में तत्पर होकर अन्यत्र प्रस्थान पर गये । (गा. 97 से 109 ) धनकुमार ऋतुओं के अनुसार दोगुंदक देव की भांति धनवती के साथ क्रीड़ा करते हुए विषयसुख का अनुभव करने लगा । (गा. 110 ) एक समय धनकुमार रूपसंपदा में लक्ष्मी की सपत्नि के समान धनवती के साथ मज्जन क्रीड़ी करने हेतु क्रीड़ा सरोवर पर गये । वहाँ अशोकवृक्ष के नीचे मानो मूर्तिमान् शांतरस हों ऐसे एक मुनि मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिरते हुए धनवती को दिखाई दिये । धर्म और श्रम की तृषा से व्याकुल थे। फलस्वरूप उनके तालु और ओष्ठपल्लव शुष्क हो गये थे। साथ ही उनके फटे हुए चरणकमल में से रुधिर निकलकर पृथ्वी पर बह निकला था । मुनि के बारे में धनवती ने अपने पति को बतलाया। संभ्रमित होकर दोनों ही जल्दी-जल्दी मुनि के पास आए। अनेक प्रकार के शीतल उपचार करके उनको सचेत किया । उस स्वस्थ हुए मुनि को प्रणाम करके धनकुमार बोले - हे महात्मन्! आज मैं धन्य हो गया, क्योंकि पृथ्वी में कल्पवृक्ष जैसे आप मुझे मिले । पर्यन्त देश में रहने वाले हमको, मरुदेश में रहने वाले प्राणियों को छाया वृक्ष की भांति आपका संसर्ग मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। हे भगवन्! मैं जानना चाहता हूँ कि आपकी इस प्रकार की दशा कैसे हुई ? यदि कहने में आपको खेद न हो और गुप्त रखने जैसा न हो तो भगवन्त हमें बताईये। (गा. 111 से 117) तब मुनिश्री ने फरमाया ‘परमार्थ से मुझे संसारवास का ही खेद है, अन्य किसी प्रकार का खेद नहीं है और यह खेद तो विहारक्रम से हुआ है, जो कि शुभ परिणाम वाला है । मेरा नाम मुनिचंद्र है । पूर्व में, मैं गुरु और गच्छ के 10 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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