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________________ प्रभु ने फरमाया, धूमकेतु नामक उस पुत्र का एक बैरी देव है, उसने छल करके कृष्ण के पास से उसका हरण किया है। उसने वैताढ्य पर जाकर एक शिला पर बालक को रख दिया । वह मरा नहीं क्योंकि वह चरमदेही है अतः किसी से भी मारा नहीं जा सकता । परंतु प्रातः काल में एक कालसंवर नामक खेचर विमान में वहाँ से जा रहा था उसने उस बालक को लेकर अपनी पत्नि को सौंप दिया अभी उनके घर में उसका पालन पोषण होकर बड़ा हो रहा है। नारद पुनः पूछा हे भगवन्! उस धूमकेतु का उसके साथ पूर्व जन्म का क्या बैर था ? नारद के पूछने पर प्रभु उसके पूर्व भव का वृत्तांत कहने लगे। ने (गा. 150 से 153) इसी जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध देश में शालिग्राम नाम का एक महर्द्धिक गाँव था । उसमें मनोरम नाम का एक उद्यान था। उस उद्यान का अधिपति एक सुमन नामक यक्ष था । उस गांव में सोमदेव नामक एक ब्राह्मण रहता था। उस सोमदेव की अग्निला पत्नि से अग्निभूति और वायुभूति नामक दो पुत्र हुए। वे वेदार्थ में चतुर थे । युवावस्था में वे विद्या से प्रख्यात होकर विविध भोगों को भोगते हुए मदोन्मत होकर रहते थे । एक दिन उस मनोरम उद्यान में नेदिवर्धन नामक आचार्य समवसरे। लोगों ने वहाँ जाकर उनकी वंदना की । उस समय ये गर्विष्ट अग्निभूति और वायुभूति ने वहाँ आकर उन आचार्य से कहा कि अरे श्वेतांबरी यदि तू कुछ शास्त्रार्थ जानता हो तो बोल । उनके ऐसे वचन मात्र से ही नंदीवर्धन आचार्य के सत्य के नाम के शिष्य ने उनको पूछा कि कहाँ तुम से आये हो? वे बोले हम शालिग्राम से आये हैं । सत्यमुनि पुनः बोले तुम किस भव में से इस मनुष्य भव में आए हो ? (गा. 154 से 161) ऐसा मैं पूछता हूं, यदि इस विषय में कुछ जानते हो तो कहो । यह सुनकर वे दोनों उस विषय के अज्ञानी होने से लज्जा से अधोमुक्त होकर खडे रहे। तब मुनि उनके पूर्वभव का वृत्तांत कहने लगे अरे ब्राह्मणों! तुम पूर्व भव में इस गांव की वनस्थली में मांसभक्षक सियार थे । एक कुटुंबी ने अपने क्षेत्र में रात को चमड़े की रज्जु आदि रखी थी । वह वृष्टि के कारण आर्द्र होने से तुम उसका भक्षण कर गये। उस आहार से मृत्यु हो जाने से अपने पूर्वकृत कर्म से के सोमदेव ब्राह्मण पुत्र हुए हो प्रातः उस कुरमी किसान ने उस इस भव में तुम त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 187
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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