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________________ इधर उस सोमक राजा ने अर्धचिक्री जरासंध के पास आकर सर्व वृत्तांत कह सुनाया। जो कि क्रोध रूपी अग्नि में ईंधन जैसा हो गया। उस समय क्रोधित जरासंध के काल नाम के पुत्र ने कहा ये तपस्वी यादव तुम्हारे आगे क्या है? इसलिए मुझे आज्ञा दो, मैं दिशाओं के अंतभाग में से अग्नि में से अथवा समुद्र के मध्यभाग में से जहाँ भी होंगे वहाँ इन यादवों को खींच खींच कर लाकर मारकर यहाँ आऊँगा। इसके बिना वापिस यहाँ नहीं आऊँगा। जरासंध ने पांच सौ राजाओं के साथ विपुल सेना देकर काल को यादवों पर चढाई करने की आज्ञा दी। काल अपने भाई यवन और सहदेव सहित अपशकुनों का निवारण करता हुआ आगे चला। यादवों के पद चिह्नों को देख देखकर चलता हुआ काल विंध्याचल के नजदीक की भूमि कि जहाँ से यादव नजदीक में ही थे, वहाँ आ पहुँचा। (गा. 366 से 371) काल को नजदीक आया हुआ देखकर राम और कृष्ण के रक्षक देवताओं ने एक द्वार वाले ऊँचे और विशाल पर्वत की विकुर्वण की और यहाँ रहा हुआ यादवों का सैन्य अग्नि से भस्म हो गया। ऐसा बोलती हुई और बड़ी चिता के पास बैठकर रूदन करती हुई एक स्त्री दिखलाई दी। उसे देखकर काल काल की तरह ही उसके पास आया, तो वह स्त्री बोली तुझ से त्रास पाकर सब यादवों ने इस अग्नि में प्रवेश कर लिया, दशार्ह राम और कृष्ण ने भी अग्नि में प्रवेश कर लिया। इससे बंधुओं का वियोग हो जाने से मैं भी इस अग्नि में प्रवेश करती हूँ इस प्रकार कहकर उसने अग्नि में प्रवेश किया। देवता इस कार्य से मोहित हुए काल अग्नि में प्रवेश करने को तैयार हुआ, और उसने अपने भाई सहदेव यवन और दूसरे राजाओं को कहा कि मैंने पिताजी ओर बहन के पास प्रतिज्ञा की है कि अग्नि आदि में से भी खींचकर मैं यादवों को मार डालूँगा। वे यादव मेरे भय से यहाँ अग्नि में घुस गये। तो मैं भी उनको मारने के लिए इस प्रज्वलित अग्नि में प्रवेश करता हूँ। इस प्रकार कहकर वह काल ढाल तलवार सहित पंतग की तरह अग्नि में कूद पड़ा और क्षणभर में देवमोहित हुआ वह अपने लोगों को देखते ही देखते मृत्यु को प्राप्त हो गया। उस समय भगवान सूर्य अस्तगिरि पर गये। इससे यवन सहदेव आदि ने वहीं पर वास किया। जब प्रभात हुआ तब उन्होंने पर्वत और चिता आदि कुछ भी वहाँ देखा नहीं ओर हरेक लोगों ने आकर समाचार दिये कि यादव दूर चले गये हैं। कितने ही वृद्धजनों ने विचार करके निर्णय लिया कि त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 173
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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