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________________ कंस ने विचार किया कि कभी वज्र निष्फल हो सकता है किंतु मुनि का भाषित निष्फल नहीं होता। (गा. 71 से 76) तो भी जब तक ये समाचार किसी को नहीं मिलते, तब तक मैं वसुदेव के पास से देवकी के सात गर्भ मांग लूँ। मेरे मित्र वसुदेव से मांग करने पर देवकी के गर्भ दे दे तो अन्य रीति से प्रयत्न करूं कि जिससे मेरी आत्मा का कुशल हो। इस प्रकार सोच कर जो कि स्वंय मदरहित तथापि मदावस्था का दिखावा करता हुआ और दूर से अंजलि जोडता हुआ कंस वसुदेव के पास आया। वसुदेव ने खडे होकर योग्यता के अनुसार उसको मान दिया और सभ्रम से हाथ से स्पर्श करके कहा कंस! तुम मेरे प्राणप्रिय मित्र हो। इस समय ऐसा लगता है कि तुम कुछ कहने के लिए आये हो, तो जो इच्छा हो वह कहो। जो कहोगे वह मैं करूँगा। कंस ने अंजलि जोड़कर कहा मित्र! पहले भी जरासंध के पास से जीवयशा को दिलाकर तुमने मुझे कृतार्थ किया है तो अब मेरी ऐसी इच्छा है कि देवकी के सात गर्भ जन्मते ही मुझे अर्पण करो। (गा. 77 से 82) सरल मन वाले वसुदेव ने वैसा करना कबूल किया। मूल वृत्तांत को नहीं जानने वाली देवकी ने भी उसको कहा, हे बंधो! तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही होगा। वसुदेव के और तेरे पुत्र में कोई अंतर नहीं है। हमारा दोनों का योग भी विधि की तरह तुम से ही हुआ है, इस उपरात हे कंस! मानो अधिकारी ही न हो वैसे कैसे ऐसे बोलते हो? वसुदेव बोले- सुंदरी! अब अधिक बोलने से क्या? तेरे सात गर्भ जन्मते ही कंस के आधीन हो जावे। कंस बोला कि यह तुम्हारा मुझ पर बहुत बडा प्रसाद है। उन्मत्तपने के बहाने इस प्रकार कहकर वसुदेव के साथ मदिरा पान करके वह अपने घर गया। उसके पश्चात वसुदेव ने मुनि का सर्व वृत्तांत सुना सब जाना कि कंस ने मुझ से छल किया। तब अपने सत्य वचन से उसे दिया वचन बहुत पश्चाताप का कारण हुआ। __(गा. 83 से 88) इसी समय में भदिलपुर में नाग नाम का एक सेठ रहता था। उसके सुलसा नाम की स्त्री थी। वे दोनों परम श्रावक थे। अतिमुक्त नाम के चारण मुनि ने उस सुलसा के संबंध में उसके बाल्यवय में कहा था कि यह बाला निंदु (मृतपुत्रा 154 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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