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________________ उस समय वसुदेव दूसरा वेश लेकर वाद्य बजाने वालों के बीच में बैठकर पटह बजाने लगे। उस वाद्य में से ऐसे स्फुट अक्षर निकल रहे थे कि हे कुंरगाक्षि! यहाँ आ! मृगी के समान क्या देख रही हो ? मैं तेरा योग्य भर्ता हूँ और तेरे संगम का उत्सुक हूँ। इन शब्दों का सुनकर रोहिणी ने उनके सामने देखा। देखते ही रोमांचित हो उठी, और उसने उनके कंठ में स्वंयवर माला आरोपित की। उस समय वहाँ आए हुए समस्त राजा इसे मारो ऐसा कोलाहल करने लगे कारण कि रोहिणी ने एक वाजित बजाने वाले का वरण किया इससे उन सभी का उपहास हुआ था। कोशला के राजा दंतवक ने अत्तिवक्र वाणी से मजाकियों की तरह रूधिर राजा को उपहास में कहा कि यदि तुमको यह कन्या ढोली को ही देनी थी, तो हम सब कुलीन राजाओं को किसलिए बुलाया? यह कन्या गुणों को जानने वाली नहीं है, इसलिए इसने जो वाजित बजाने वाले का वरण किया तो यह बात उपेक्षा करने योग्य नहीं है। (गा. 10 से 16) __ कारण कि बाल्यवय में कन्या का शासक पिता होता है। तब रूधिर राजा बोला- हे राजन्! इस विषय में तुमको कुछ भी विचार करने की जरूरत नहीं है। कारण कि स्वंयवर में जिसे कन्या वरण करे वही पुरूषप्रमाण है। उसका पति होता है इस पर न्यायवेता बोले विदुर यद्यपि तुम्हारा वचन उपयुक्त है तथापि इस पुरूष के कुल आदि के विषय में पूछना चाहिये। उस समय बोले कि मेरे कुल आदि के विषय में कुछ भी पूछने का यह अवसर नहीं है। इस कन्या ने मेरा वरण किया है, इससे जैसा तैसा भी हूँ पर पर मैं योग्य ही हूँ। मेरा वरण की हुई कन्या को यदि कोई सहन नहीं करे तो उसे हँसकर भुजाबल बनाकर मैं मेरा कुल बताऊँगा। वसुदेव के उद्यत वचन सुनकर क्रोधित हुए जरासंध ने समुद्रविजय आदि राजाओं को इस प्रकार आज्ञा दी कि पहले तो यह रूधिर राजा ही राजाओं में विरोध उत्पन्न करने वाले हैं ओर दूसरा यह ढोली ढोल बजा बजाकर उन्मुक्त हो गया है। इसने यह राजकन्या प्राप्त की, इससे भी इसे तृप्ति मिली नहीं। इसने पवन द्वारा नमे हुए वृक्ष का फल प्राप्त करके वामन पुरूषगर्व करते हैं, वैसे ही यह भी गर्व कर रहा है इसलिए इस रूधिर राजा को और इस वादक दोनों को ही मार डालो। ऐसी जरासंध की आज्ञा होते ही समुद्रविजय आदि राजा युद्ध करने के लिए तैयार 146 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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