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________________ परिचय है। तो क्या तुम नल हो? परंतु नल की ऐसी विरूप आकृति नहीं है। फिर उस नगर से और इस नगर में दौ सो योजन का अंतर है, तो वे यहां कैसे आ सकते हैं। इसी प्रकार वह भरतार्धक राजा एकाकी भी कैसे हो सकते हैं ? (गा. 931 से 939) फिर मैंने तो देवताओं और विद्याधरों का भी पराभव करे वैसा उनका रूप देखा है, अतः तू तो वह नहीं है। ऐसा कहकर उस पर संतुष्ट हुए दधिपर्ण उस कुबड़े को वस्त्र अलंकार आदि और एक लाख टंक एक प्रकार का द्रव्य तथा पांच सौ गांव दिये। कुब्ज नल ने पांच सौ गांव के अतिरिक्त अन्य सभी स्वीकार कर लिया। तब राजा ने कहा, रे कुब्ज! अन्य और कुछ भी तुझे चाहिए क्या? तब कुब्ज ने कहा आपके राज्य की सीमा में से शिकार और मदिरापान का निवारण कराओ ऐसी मेरी इच्छा है, उसे आप पूर्ण करो। राजा ने उसके वचन को मान्य करके उसके शासन में सर्वत्र शिकार और मदिरापान की वार्ता को भी बंद करवा दी। (गा. 940 से 943) एक बार राजा दधिपर्ण ने उस कुबड़े को एंकात में बुलाकर पूछा कि तू कौन है? कहाँ से आया है? और कहाँ का निवासी है? वह बता। वह बोलाकोशलनगरी में नल राजा का मैं हुंडिक नाम का रसोइया हूँ, और नल राजा के पास से मैंने सर्व कलाएं सीखी है। उसके भाई कुबेर ने द्यूतकला से नल राजा की सर्व पृथ्वी जीत ली, और नलराजा दवदंती को लेकर अरण्य में गये। वहाँ वे शायद मर गये होंगे ऐसा जानकर मैं आपके पास आया। मायावी और पात्र को नहीं पहचानने वाले उनके भाई कुबेर का मैं आश्रित नहीं हुआ। इस प्रकार नलराजा के मरण की बात सुनकर दधिपर्ण राजा हृदय वज्राहत हो परिवार के साथ आक्रंद करने लगे। तब नेत्राक्षु के मेघरुप दधिपर्ण ने नलराजा का प्रेतकार्य किया कुबडे ने वह स्मितहास्यपूर्वक सब देखा। (गा. 944 से 949) __एक बार दधिपर्ण राजा ने दवदंती के पिता के पास किसी कारण से मित्रता के कारण कोई एक दूत भेजा। भीमराजा ने दूत का सत्कार किया। वह सुखपूर्वक उनके पास रहा। एक बार बात बात में प्रसंग आने पर इस वक्ता दूत ने कहा कि एक नलराजा का रसोईया मेरे स्वामी के पास आया है, वह नलराजा के पास त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 135
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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