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________________ मुहुर्त बताने वाले ज्योतिषी की तरह मैं आकर तुझे बता दूंगा। इसलिए अब स्वस्थ हो जा। हे पुत्र! यह श्रीफल और रत्न का करंडक ग्रहण कर और यत्न से क्षात्रव्रत की तरह इसकी रक्षा करना। जब तुझे तेरे स्वरूप की इच्छा हो तब यह श्रीफल फोड़ना, उसमें तू अदूष्य देवदूष्य वस्त्र देखेगा और यह रत्न का करंडक खोलेगा तो उसमें मनोहर हार आदि आभूषण देखेगा। जब तू इन वस्त्रों और आभरणों को धारण करेगा, तब तू पहले के समान देवाकृति तुल्य रूप को प्राप्त कर लेगा। नल ने पूछा- पिताजी! आपकी वधू दवदंती को जहाँ मैंने छोड़ा था वहाँ ही रही है, या अन्य स्थान पर गई है वह कहो। तब उस देव ने जिस स्थान पर उसका त्याग किया था उस स्थान से लेकर दवदंती विदर्भ देश में अपने पिता के यहाँ गई, वहाँ तक का सर्व वृत्तांत उसके सतीत्वपने की स्थितिपूर्वक कह सुनाया। तब उन्होंने नल से कहा- हे वत्स! तू अरण्य में क्यों भटक रहा है? तेरी जहां जाने की इच्छा हो, वहाँ मैं तुझे पहुँचा दूँ। नल ने कहा हे देव! मुझे सुसुझार नगर पहुंचा दो, तब वह देव वैसा करके अपने स्थान को चला गया। (गा. 898 से 912) नल राजा उस नगर के समीपस्थ नंदनवन में रहे, वहाँ एक सिद्धायतन जैसा कोई चैत्य उसको दिखाई दिया। उन चैत्य में कुब्ज बने नल ने प्रवेश किया। उस चैत्य में श्री नेमिनाथ जी की प्रतिमा देखी, तब उन्होंने पुलकित अंग से उनकी वंदना की। नल सुसुमार नगर के द्वार के पास आए। उस समय उस नगर में एक उन्मत हाथी बंधन तोड़ कर भ्रमण कर रहा था। पवन भी जो उसके ऊपर के भाग को स्पर्श करे तो वह आसन स्कंधप्रदेश को कंपित करता था। ऊपर स्फुर्ति से सूंड द्वारा वह पक्षियों को भी खींच लेता था। महावत हषि विष सर्प की भांति उसकी दृष्टि में भी पड़ते नहीं थे। और महावत की तरह वह उद्यान में वृक्षों को भी तोड रहा था। उस समय वहाँ का राजा दधिपर्ण जो कि उस गजेंद्र को वश में करने में असमर्थ थे, वे किले के ऊपर चढ कर ऊँचे स्वर में बोले कि जो कोई मेरे इस गजेंद्र को वश में कर देगा उसको अवश्य मैं वांछित फल दूँगा। क्या कोई यहाँ गजारोहण कला में धुरंधर है? उस वक्त कुबड़े नल ने कहा वह हाथी कहाँ हैं ? उसे मुझे बताओ। आपके देखते ही मैं उसे वश में कर लूँगा। इस प्रकार वह कुब्ज बोल ही रहा था कि इतने में तो वह गजेंद्र ऊँची गर्जना करता हुआ उसके पास आया, तब चरण से मानो पृथ्वी को स्पर्श न करता हो, वैसे वह त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 133
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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