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________________ उस समय कोई देव आकाश में से उतरकर राज्यसभा में आया और अंजली जोड़ कर वैदर्भी को कहने लगा हे भद्रे! मैं पिंगल चोर हूँ। आपकी आज्ञा से दीक्षा लेकर विहार करते करते एक बार मैं तापसपुर में गया। वहाँ शमशान में कायोत्सर्ग करके रहा। इतने में चिता में से दावानल प्रसरने लगा। उससे मैं जलने लगा। तो भी धर्मध्यान से च्युत नहीं हुआ, स्वंयमेव आराधना की और नवकार मंत्र के स्मरण में तत्पर रहा। एवं पृथ्वी पर गिर पड़ा। वहाँ मेरा शरीर उस अग्नि में समाधिरूप हो गया। वहाँ से मरकर मैं पिंगल नाम का देव हुआ हूँ। देवगति में उत्पन्न होते ही अवधिज्ञान द्वारा मुझे ज्ञात हुआ कि दवदंती ने मुझे वध में से बचाकर दीक्षा लेने का उपदेश दिया था। उसके प्रभाव से मैं देवता हुआ हूँ। हे भद्रे! जो तुमने उस वक्त मुझ महापापी की अपेक्षा की होती तो मैं धर्म को प्राप्त किये बिना मृत्यु के पश्चात नरक में जाता। परंतु हे महासती! आपकी कृपा से मैंने स्वर्गलक्ष्मी को प्राप्त किया है। अतः मैं आपको देखने आया हूँ, आपकी विजय हो। ऐसा कहकर सात कोटि सुवर्ण की दृष्टि करके वह देव बिजली के समूह के सदृश आकाश में अंतर्ध्यान हो गया। इधर साक्षात आहेत धर्म की आराधना का फल देखकर विद्वान राजा ऋतुपर्ण ने आर्हत धर्म को अंगीकार किया। (गा. 854 से 863) तब अवसर प्राप्त हुआ जानकर हरिमित्र राजबटुक ने कहा कि हे राजन्! अब आज्ञा दो कि देवी दवदंती पिता के घर जावे क्योंकि पितृगृह से वह चिरकाल से विलग है उस वक्त चंद्रयशा ने भी वैसा करने की अनुमति दे दी। तब राजा ने बड़े सैन्य के साथ वैदर्भी को विदर्भ देश की तरफ रवाना किया। दवदंती को आता सुनकर भीमराजा अतिशय प्रेम वश दुर्धरवेग वाले वाजि अश्व पर चढकर शीघ्र ही गये और दवदंती के पास पहुंचे। पिताजी को सामने आता हुआ देख ही वैदर्भी ने बहिन का त्याग कर दिया पैरों से चलती हुई सस्मित मुखकमल से सामने दौडी। और पिताजी के चरणकमल मे गिर पड़ी। चिरकाल से की उत्कंठा से मिले पिता और पुत्री के नेत्र जल से वहाँ की पृथ्वी भी भीग गई। साथ में अपनी माता पुष्पदंती भी आई हुई है, ये समाचार मिलते ही गंगानदी को यमुना नदी मिले वैसे दृढ आलिंगन से दोनों ही मिले। उनके गले में लिपटी नलप्रिया ने मुक्तकंठ से रूदन किया। (गा. 864 से 872) 130 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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