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________________ चंद्रयशा ने पूछा- तुम कौन हो ? तब उसने सार्थवाह को जो हकीकत कही थी, वह सर्व वृत्तांत उसको कह सुनाया । यह सुनकर चंद्रयशा बोली- हे कल्याणी! राजकुमारी चंद्रवती के साथ तू भी मेरे घर सुख से रह। एक वक्त चंद्रयशा ने अपनी पुत्री चंद्रवती को कहा वत्से ! यह तेरी बहन मेरी भाजी दवदंती की जैसी ही है परंतु उसका यहाँ आगमन संभवित नहीं है, क्योंकि जो अपने भी स्वामी नलराजा हैं, वह तो उनकी पत्नि है । उनकी नगरी तो यहाँ से एक सौ चौवालीस योजन दूर होती है, तो उसका यहाँ आगमन कैसे संभव हो ? और उसकी ऐसी दुर्दशा भी कहाँ से हो ? (गा. 774 से 776) चंद्रयशा रानी नगर के बाहर जाकर प्रतिदिन दीन और अनाथ लोगों को यथारूचि दान देती थी। एक बार वैदर्भी ने देवी से कहा कि आपकी आज्ञा हो तो आपके स्थान पर मैं दान दूँ कि यदि मेरे पति याचक के वेश में आ जावे तो पहचान लूं। तब से चंद्रयशा ने यह काम उसे सौंपा । वह पति की आशा से क्लेश को सहन करती यथास्थित रूप से दान देने लगी । वैदर्भी प्रत्येक याचक को प्रतिदिन पूछती कि तुमने ऐसा रूप वाला कोई पुरूष देखा है ? (गा. 777 से 780) एक बार भीमसुता दानशाला में खड़ी थी, इतने में जिसकी आगे डिंडिम बज रहा है, ऐसे एक चोर को रक्षकगण वहाँ स्थान ले जा रहे थे । उसको देखकर वैदर्भी ने रक्षकों को पूछा इस चोर ने क्या अपराध किया है कि जिससे इसको वध करने की सजा हुई है ? रक्षकों ने कहा कि इस पुरूष ने राजकुमारी चंद्रवती का रत्नकंरडक चोरा है, इस अपराध से इसको वध की सजा हुई है । वैदर्भी की दयालु मूर्ति देखकर चोर बोला - देवी! आपकी दृष्टि मुझ पर पड़ी है तो अब मैं मरण के शरण किसलिए होउँ ? आप ही मेरे शरणभूत हो । तब दवदंती रक्षकों के पास आई और चोर को कहा, तू भय मत रख, अवश्य ही जीवित रहने का कुशल होगा। इस प्रकार कहकर दवदंती बोली कि यदि मैं सती होऊँ तो इस चोर के बंधन छूट जाय। इस प्रकार सतीत्व की श्रावणा करके उसने झारी में से जल लेकर तीन बार पानी छांटा तो तुंरत ही उस चोर के बंधन टूट गये । उस समय वहाँ कोलाहल होने लगा। इससे यह क्या हुआ ? त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व ) (गा. 781 से 787) 125
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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