SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभु के तीर्थ में होगा? उन्होंने कहा कि मल्लिनाथ अर्हत के तीर्थ में होगा। उन्होंने कहा कि मल्लिनाथ अर्हत के तीर्थ में तू देवलोक से च्यवकर प्रसन्नचंद्र नाम का मिथिलापुरी का राजा होगा। वहाँ उन्नीसवें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी के दर्शन से केवल ज्ञान प्राप्त करके तू निर्वाण पद को प्राप्त होगा। हे धर्मज्ञ बहन! तभी से मुझे श्री मल्लिनाथ जी पर अत्यंत भक्ति उत्पन्न हुई हैं। (गा. 739 से 744) इसलिए इस वस्त्र पर उनका बिंब आलेखित करके हमेशा उनकी पूजा करता हूं। इस प्रकार अपना वृतांत बताकर फिर उस श्रावक ने कहा कि हे पवित्र दर्शन वाली बहन! अब तुम कौन हो? यह भी अपने धर्मबंधु को बतलाओ। उसके इस प्रकार के प्रश्न से नेत्र में अश्रु लाकर धनदेव सार्थवाह ने उत्तम कथित पतिवियोग आदि का सर्व वृत्तांत उस उत्तम श्रावक को कह सुनाया। यह सुनकर श्रावक के नेत्र में भी अश्रु आ गये और ठोड़ी पर हाथ पर रखकर वह विचाराधीन हो गया। थोड़ी देर में दवदंती का दुख उसके हृदय में समाता न हो, वैसे दुख से व्याप्त होकर वह बोला कि हे बहन! तुम शोक मत करो। इस प्रकार के दुख का कारणभूत तुम्हारा कर्म ही उदित हुआ है, परंतु ये सार्थवाह तुम्हारे पिता स्वरूप है और मैं भाई हूँ अतः यहाँ सुख से रहो। (गा. 745 से 748) प्रातःकाल सार्थवाह अचलपुर आया वहाँ वैदर्भी को छोडकर वह दूसरी तरफ गया। यहाँ नृषातुर हुई वैदर्भी ने उस नगर द्वार के समीपस्थ वापिका में जल पीने के लिए प्रवेश किया। उस समय वहाँ पानी भरने आई नगर की स्त्रियों को वह मूर्तिमान जल देवता जैसी दिखाई दी। ज्योंहि वह जल के मुंडेर पर खडी हुई त्योंहि वहाँ चंदनधे ने आकर उसके नाम चरण को पकड लिया। क्योंकि दुखी के ऊपर सोहृदयपन की तरह दुख ही आकर पडता है। दवदंती ने तीन बार नवकार मंत्र का पाठ किया कि उसके प्रभाव से इंद्रजालिक जैसे गले में रखी वस्तु को छोड देता है, वैसे ही चंदनधोआ ने उसके चरण को छोड दिया। पश्चात तालाब में हाथ पैर और मुख धोकर, उसके सुंदर जल का पान करके वैदर्भी हंसनी की तरह मंद मंद गति से चलती हुई, वापिका से बाहर निकली। तब शीलरत्न के करंडिका रूप दवदंती खेदमुक्त चित्त से वापिका के मुंडेर पर बैठी और दृष्टि द्वार नगर को देखकर पवित्र करने लगी। (गा. 749 से 754) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 123
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy