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________________ गिरते ही तुंरत वह बुझे हुए अंगारे जैसा निस्तेज हो गया। शासन देवी के प्रभाव से वृक्ष पर से पत्ता जैसे झड़ जाता है वैसे कृष्ण राज के हाथ में से खड्ग गिर पड़ा। उस समय निर्विष हुए कृष्ण सर्प के सदृश हत प्रभाव हुआ कृष्ण राज ने सोचा कि, यह नल राजा सामान्य पुरुष नहीं लगता उसके साथ जो मैंने भाषण दिया वह बिना कुछ सोचे समझे कर लिया इसलिए नल राजा तो प्रणाम करने योग्य हैं। इस प्रकार विचार करके कृष्ण राज ने आए हुए दूत की भांति नल के पास जाकर उनको प्रणाम किया। तब मस्तक पर अंजलि बद्ध होकर वह बोलाहे स्वामिन्! मैंने यह अविश्वासी कार्य किया है अतः मुझ मूर्ख का अपराध क्षमा करो । प्रणम हुए कृष्ण राज को नल ने अच्छी तरह बोल कर विदा किया। भीमरथ राजा अपने जमाता के इस प्रकार के गुण देखकर अपनी पुत्री को पुण्यशाली मानने लगा। (गा. 350 से 365 ) आगंतुक सभी राजाओं को सत्कार पूर्वक विदा करके भीमराज राजा ने नल और दवदंती का विवाहोत्सव किया । नलराजा के विवाहोत्सव में भीमराजा ने हस्तमोचन के अवसर पर अपने वैभव के अनुसार हाथी घोड़े आदि विपुल समृद्धि भेंट की। तत्पश्चात् कंकणबद्ध नवीन वरवधू गोत्र की वृद्ध स्त्रियों के मंगलगीत के साथ गृहचैत्य में आकर देववंदन किया। राजा भीमरथ तथा निषधराज ने बड़े उत्सव से उनका कंकण मोचन कराया। भक्ति वाले भीमरथ ने पुत्र सहित निषध राजा को सत्कार करके विदा किया और स्वंय भी कुछ दूर तक विदा करने गये। लोगों में ऐसी मर्यादा होती है। पति के संग जाती हुई दवदंती को माता ने शिक्षा देते हुए कहा, हे पुत्री । आपत्ति आए तो भी दवदंती देह की छाया की भांति पति का त्याग नहीं करना । माता पिता की आज्ञा लेकर दवदंती रथ में बैठी, तब नल ने उसे अपने उत्संग में बिठाया । (गा. 366 से 372) कौशल देश के राजा निषध ने कौशला नगरी की ओर प्रयाण किया । उस समय उनके गजेंद्रों के सघन मद द्वारा सर्व पृथ्वी का कस्तूरी की तरह सिंचन होने लगा। घोड़ों के नाल से उखडी पृथ्वी कांसी के ताल के समान शब्द करने लगी। रथों के पहियों की रेखाओं से सर्व मार्ग चित्रित हो गए। परस्पर सघन पायदल के गमन से सर्व पृथ्वी ढंक गई ऊँटों ने मार्ग के वृक्षों को पत्र रहित कर त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व ) 99
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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